महामारी कोविड-19 नामक कोरोना वायरस का परिचय देने की जरूरत नहीं है। आप सभी इस महामारी से भलीभांति परिचित हैं। रोजाना लाखों लोग इस महामारी का शिकार बन रहे हैं। हजारों लोग रोजाना इस महामारी के चलते अपनी जान गवा रहे हैं। अगर आप इस महामारी की चपेट में आ चुके हैं और आपको पता नहीं है कि आपको कोरोना वायरस हो गया है।
लेकिन अगर सिम्पटम्स से आपको ऐसा शक हो रहा है कि आपको कोरोना वायरस हो गया है तो तुरंत पहले इसकी जांच करें और अगर आप की रिपोर्ट पोस्टिव आती है तो आप का इलाज किस प्रकार किया जाएगा। आइए हम इसके बारे में आपको बताते हैं कि महामारी कोविड-19 नामक कोरोना वायरस से पीड़ित व्यक्ति का इलाज किस प्रकार से किया जाता है।
क्या है कोरोना वायरस मरीजों के इलाज की प्रक्रिया
अगर कोई भी व्यक्ति कोरोना वायरस से संक्रमित हो जाता है तो उसका इलाज किस प्रकार किया जाए यह उसके पास्ट से पता चलता है यानी अगर वह मरीज पहले से ही किसी गंभीर बीमारी का शिकार है तो डॉक्टर उसका इलाज बहुत ही ध्यान पूर्वक तरीके से करते हैं। क्योंकि अगर कोई मरीज पहले से सुगर, हार्ट या किडनी की समस्या से पीड़ित है और ऊपर से अगर उसे कोरोनावायरस हो जाता है तो उसके लिए खतरा और बढ़ जाता है। क्योंकि ऐसे में मरीज के बचने के चांसेस बहुत कम ही होते हैं। सारे डॉक्टर ऐसे केसेस को बड़ी सावधानी से हैंडल करते हैं।
हॉस्पिटल में किन मरीजों को एडमिट किया जाता है?
अगर कोई व्यक्ति कोरोना वायरस संक्रमित पाया गया है। और वह हॉस्पिटल में भर्ती हो गया है तो सबसे पहले डॉक्टर्स उसके शरीर को ऑक्सीजन लेवल चेक करते हैं। इसके लिए डॉक्टर उस मरीज के सीने का एक्सरे करते हैं और उसके बाद निमोनिया की जांच करते हैं। निमोनिया, माइल्ड और सीवियर इस महामारी के प्रमुख लक्षण हैं।
जब डॉक्टर मरीज के ऑक्सीजन लेवल, निमोनिया और इंफेक्शन से जुड़े तमाम लक्षणों की जांच कर लेते हैं और अगर मरीज में यह सारे लक्षण बढ़ी हुई मात्रा में दिखाई देते हैं तो डॉक्टर उन्ही मरीजों को एडमिट करते हैं। कोरोना वायरस से पीड़ित होने के बाद मरीजों को सांस लेने में बहुत तकलीफ होती है। इसीलिए अगर जिस भी मरीज में ऑक्सीजन लेवल कम पाया जाता है। उसे ही भर्ती किया जाता है, ताकि उसे जरूरत पड़ने पर ऑक्सीजन और एमरजैंसी ट्रीटमेंट दिया जा सके।
अगर कोई भी मरीज कोरोना वायरस से संक्रमित पाया गया है और इसके अलावा उसके फेफड़ों में सूजन भी है तो ऐसी स्थिति में डॉक्टर्स इम्फेलेमेशन कम करने की दवाइयां देते हैं। क्योंकि यह दवाइयां कोरोना वायरस को गंभीर स्थिति में पहुंचने से रोकने में सहायक साबित होती है। इन दवाइयों में डेक्सामेथासोन भी शामिल है।
इस महामारी से जुड़ी हुई जो रिपोर्टर्स अभी तक आई है उनकी माने तो इस महामारी से पीड़ित जो लोग वेंटिलेटर सपोर्ट पर पहुंच गए थे, उनमें से जिस भी मरीज़ को बचाया जाता है उसमे से 15 फीसदी से अधिक लोगों को डेक्सामेथासोन जैसी दवाइयों के दम पर ही बचाया जा सका है। यह दवाई उन्हीं लोगों पर कारगर सिद्ध हुई है जो कोरोना मरीज़ वेंटिलेटर सपोर्ट पर होता है। यह दवा उनके मौत के ख़तरे को कम कर देती है। लेकिन इसके उलट अगर यह दवा अगर बिना वेंटिलेटर वाले मरीजों को दी जाती है तो उसके लिए यह ख़तरनाक साबित हो सकती है।
जरूरी नहीं है कि डॉक्टर्स आपको इलाज़ के दौरान यही दवा देगें, डॉक्टर्स अपने मुताबिक दवाइयों को बदल भी सकते हैं। भारत में ज्यादातर रेमेडेसिवीर दवा दी जाती है। वैसे रेमेडेसिवीर दवा इबोला वायरस से संक्रमित मरीजों के लिए विकसित की गई थी लेकिन यह कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के लिए भी कारगर सिद्ध हो रही है। यह रिकवरी रेट को बहुत बडा देती है यानी आपके जल्दी ठीक होने के चांसेज ज्यादा हो जाते हैं।
आपने पढ़ा कि आपको किस स्थिति में हॉस्पिटल में एडमिट किया जाएगा और कौन सी दवा दी जाएगी। लेकिन हम इस लेख को पढ़ने के बाद अपना ट्रीटमेंट करने के लिए अपने से किसी भी दवाई का सेवन ना करें। डॉक्टर्स से सलाह लेकर ही दवा खाएं। займ на карту срочно без отказа
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