एक दौर था जब अधिक उत्पादन की लालसा में किसान अंधाधुंध रासायनिक खादों का प्रयोग करते थे। यूरिया डीएपी के प्रयोग ने शुरुआत में तो उत्पादन बढ़ाया लेकिन धीरे-धीरे जमीन बंजर होने लगी। रासायनिक खाद कीटनाशकों की मदद से उपजे खाद्यान्न बीमारियों का कारण बनने लगे, उनसे स्वाद भी जाने लगा। समय बदला और किसान अब अपने परंपरागत तरीको की और लौटने लगा है, उत्पादन से ज्यादा गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाने लगा है। जैविक खेती की मांग बढ़ी है जैविक खेती की मांग बढ़ी तो जैविक उर्वरकों की भी मांग बढ़ी। गोबर की खाद, कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट आज पेशेवर तरीके से बनाई और बेंची जाने लगी है।
जैविक खेती को अपनाकर अपना और अपने साथी किसान भाईयों को फायदा पहुंचाने के लिए उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के एक किसान किशोरी लाल वर्मा ने पशुओं के गोबर का उपयोग के नए तरीके खोज लिए हैं।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 90 किलोमीटर दूर सीतापुर जिले के गोंदलामउ ब्लाक के खालेगढ़ी में रहने वाले किसान किशोरी लाल वर्मा बताते हैं कि इन नए तरीकों से खेती की शुरुआत करने के लिए उन्हें किसी विशेष संसाधन या बड़े पूंजी-निवेश की आवश्यकता नही पड़ी। उन्होंने बस रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों से अपनी ज़मीन पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव को समझकर पूर्ण रूप से जैविक खेती को अपना लिया।
अब वो अपने खेत में स्वउत्पादित जैविक खाद और घर में ही बने देशी कीटनाशकों का ही छिड़काव करते हैं। किशोरी लाल वर्मा ने गोबर और गौमूत्र से बनी खाद, वर्मी कम्पोस्ट का न सिर्फ़ उपयोग करते हैं बल्कि उसे बेंच कर आज अच्छा धनार्जन भी कर रहे हैं।
उनकी जैविक खाद की मांग दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। जिसकी पूर्ति के लिए वे अब अन्य किसानों से गोबर और गौमूत्र खरीदकर उन्हें भी लाभ पहुंचा रहे हैं। किशोरीलाल वर्मा गोबर की खाद से वर्मी कम्पोस्ट के अलावा जीवामृत और घनामृत जैसे उत्पाद भी बनाते हैं जिनकी किसानों के बीच अच्छी डिमांड है। जिस कारण से बड़ी दूर दूर से लोग उनसे इन उत्पादन की जानकारी लेने आते हैं जिनमें कृषि वैज्ञानिक भी शामिल हैं। किशोरी लाल उनसे अपना अनुभव साझा करने में नहीं हिचकिचाते हैं।
किशोरी लाल बताते हैं, “धीरे धीरे मेरा गोबर की खाद तथा अन्य उत्पाद बनाने और बेचने का व्यवसाय बड़ा हो रहा और अब मुझे अच्छा लाभ भी मिलने लगा है। मेरी जैविक खाद एक हजार रुपए प्रति कुंतल से लेकर 14 सौ रुपए प्रति कुंतल तक बिक जाती है । जो किसान भाई मेरे यहां से उत्पाद ले जाते हैं और दूसरे किसानों को उसके लाभ बताते हैं। ऐसे ही मेरे जैविक उत्पादों का प्रचार होता जा रहा है।
जीवामृत
किशोरी लाल जी गोबर और गौमूत्र के साथ कुछ अन्य जैविक तत्व गुड़, फलों का गूदा, बेसन आदि मिला कर एक चमत्कारी उत्पाद बनाया है- जीवामृत। इसके एक ग्राम में 700 करोड़ से अधिक सूक्ष्म जीवाणु पाए जाते हैं। यह जीवाणु पेड़ पौधों की भोजन बनाने में मदद करतें है। इसे बनाने का तरीक़ा आगे बताया गया है-
- गोबर – 10 किलोग्राम
- गौ मूत्र – 5-10 लीटर
- गुड़ – 2 किलोग्राम
- फलो का गूदा- 2 किलोग्राम
- बेसन – 2 किलोग्राम
- पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी -100 ग्राम
- पानी – 200 लीटर
इन सभी चीजों को ड्रम मे घोलकर कर जूट की बोरी से ढककर छाया में रख दीजिए और दो दिन में यह घोल बनकर फसल में छिड़काव के लिए तैयार हो जाता है।
किशोरी लाल जी का अन्य उत्पाद है घन जीवामृत, यह एक तरह की सूखी खाद है। इसका प्रयोग बुवाई के समय या पानी देने के तीन दिन बाद किया जाता है। इसे बनाने के लिए 100 किलोग्राम गोबर, एक किलो गुड़, एक किलोग्राम बेसन, 100 ग्राम खेत की जीवाणुयुक्त मिट्टी, पांच लीटर गोमूत्र की ज़रूरत पड़ती है। इन सभी चीजों को फावड़ा से अच्छे से मिलाकर दो दिन के लिए छांव में फैलाकर जूट की बोरी से ढक दें। घन जीवामृत को छह महीने तक उपयोग में लाया जा सकता है। एक एकड़ खेत में एक कुंतल घन जीवामृत देने से खेत की मिट्टी उपजाऊ होती है तथा उपज ज्यादा प्राप्त होती है।
किशोरी लाल जी जैसे किसान, आज जब ज्यादातर लोग खेती से विमुख हो रहें हैं किसान भाईयों को नई राह दिखाते हैं कि कैसे अपने पास उपलब्ध संसाधनों का अच्छा प्रयोग करके न केवल अपना उत्पादन बढ़ाया जा सकता है अपितु इससे मोटा लाभ भी कमाया जा सकता है। unshaven girl
Leave a Reply