हमेशा से हम यही सुनते आए हैं कि जितने अच्छी खेत की जुताई की जाती हैं, उतना हीं अच्छी उसमे फसल भी निकलती हैं। जुताई से मिट्टी का लेवल बराबर हो जाता हैं और साथ हीं साथ बड़े-बड़े पत्थर भी आराम से ज़मीन से हट जाते हैं। लेकिन आज विज्ञान इतना आगे पहुंच चुका हैं कि बिना जुताई के भी खेत मे अनाज उगाया जा सकता हैं। परन्तु, भारत मे अभी तक इस तकनीक का इस्तेमाल नहीं किया जाता हैं। क्योकि यह बहुत महंगी तकनीक होती हैं। लेकिन भारत मे एक इंसान नें इस कमाल को कर दिखाया हैं। परन्तु, इस तकनीक को हूबहू ना अपनाकर, उन्होंने अपने द्वारा निर्माण की गयी एक नई तकनीक का इस्तेमाल किया हैं। हैरान कर देने वाली बात तो यह हैं कि उन्होंनें पहली बार मे हीं इसमें सफलता हासिल कर ली हैं। इस तकनीक के बारे मे उन्होंने खुद हीं दिमाग़ लगाया था। यह उनके लिए एक बहुत हीं बड़ा रिस्क था। क्योकि उन्होंने इसको पहली बार अपनाया था और इसके परिणाम बुरे भी हो सकते थे। लेकिन अच्छी बात तो यह हैं कि ऐसा नहीं हुआ।
उगाया गेहूं और जौ खेत की जुताई किये बिना
विजय जड़धारी आज एक सफल किसान हैं। वह उत्तराखण्ड मे टिहरी के एक छोटे से गांव जड़धार के निवासी हैं। उन्होंने इस कार्य को बीज बचाओ आंदोलन के तहत किया हैं। इसके लिए उन्होंने बहुत हीं सरल तरीका अपनाया और आज वह इस काम के लिए पूरी दुनिया भर मे मशहूर हो चुके हैं। उस स्थान के विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक भी उनके इस काम के लिए उनकी प्रशंसा कर रहे हैं। वहां की जनता भी उनके इस सफल प्रयास के लिए उन्हें ढेर सारी सहारना दे रही हैं।
कैसे उगाया गेहूं और जौ?
इसके लिए उन्होंने सबसे पहले तो नवम्बर मे धान की कटाई कर ली। इसको उन्होंने पहले से हीं बो रखा था। धान काटने के बाद उन्होंने उस खेत को ऐसी हीं छोड़ दिया। और बिना कुछ किये हीं उसमे गेहूं को बो दिया। गेहूं की बुआई करने के बाद उन्हें इसमें अलग से कुछ भी नहीं डालना पड़ा। खाली उसी धान की जो पराली निकली थी, उसका इस्तेमाल करके उसे ढक दिया। वही पराली बाद मे सड़ कर उस खेत के लिये खाद का काम करने लग गयी थी। इसकी मदद से खेत को ढकने मे उन्हें बहुत हीं ज्यादा फायदा हुआ।
1)पहला फायदा तो यह हुआ कि उन्हें खेत को पोषण पहुंचाने के लिये किसी भी अन्य प्रकार कि वस्तु (फ़र्टिलाइज़र, मेनयोर ) का इस्तेमाल नहीं करना पड़ा। ज्यादातर किसान इसका इस्तेमाल करते हैं। इससे उनको यह लाभ होता हैं की काम समय मे हीं उनको ज़्यादा उत्पादन मिल जाता हैं। साथ हीं साथ वह उनको सस्ता भी पड़ता हैं। तो वह उसका ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल करते हैं। परन्तु, यह ना हीं उनकी खेत की ज़मीन के लिये अच्छा होता हैं और ना हीं अनाज के लिए।
2)दूसरा फायदा यह हुआ कि इस तकनीक को अपना कर उनके ज़्यादा पैसे भी नहीं खर्च हुए। एक तरीके से धान उगाने की वजह से उनका खेत पहले से हीं जुता हुआ था। इसी चीज का उन्होंने लाभ भी उठाया। इसी वजह से उन्होंने इसे “जीरो बजट” वाली खेती का भी नाम दिया हैं।
5 नाली वाले तरीके को भी अपनाया
इसके अलावा उन्होंने 5 नाली बनाने वाली तकनीक को भी अपनाया था। इस तकनीक से यह फायदा होता हैं कि अगर खेत मे ज़्यादा पानी इक्कठा होता हैं। तो वह उसी नाली की सहायता से बेह कर चला जाता हैं। इससे खेत मे ज़्यादा पानी इक्कठा नहीं होता और अनाज के बर्बाद होने के चान्सेस कम से कम हो जाते हैं। इस विषय पर विजय जी नें यह भी बताया कि यह एक ऐसी तकनीक हैं जिससे ख़राब से ख़राब मौसम मे भी अनाज का अच्छा उत्पादन किया जा सकता हैं। और साथ हीं साथ अनाज को भी किसी प्रकार की हानि से बचाया जा सकता हैं।
खाली हटाई थी जंगली घास
बस उन्होंने इस अनाज की सफलता पूर्वक उगाई के लिए एक चीज की थी। वह यह थी कि बीज बोने से पहले उन्होंने उस खेत से फालतू सारी घास, कूड़ा और अन्य किसी भी प्रकार कि जंगली घास हटा दी थी। जो कि अनाज को हानि पंहुचा सकती थी। इससे उनको बस यही एक फायदा हुआ था कि उनको हाल का इस्तेमाल नहीं करना पड़ा था। खेत की जुताई करने के लिए। और इसी वजह से यह काफ़ी सारे पैसे बचाने मे सहायता प्रदान करती हैं। इसी फायदे का लाभ उठाकर एक गरीब किसान भी इस तकनीक को आराम से अपना सकता हैं।
क्या मिला बिना जुताई के गेहूं और जौ उगाने का परिणाम?
अभी कुछ दिनों बाद हीं उनकी फसल कटने के लिये तैयार हो जाएगी। उसके बाद हीं पता चलेगा की इस तकनीक को अपनाने से उन्हें इसका क्या परिणाम मिला। अभी तक तो सब कुछ देखने से सही हीं लग रहा हैं। अनाज भी एकदम स्वस्थ दिख रहा हैं। और साथ हीं साथ वह दिखने मे और छूने मे अन्य अनाज जैसा हीं हैं। तो अभी तक तो इससे यही समझ आता हैं की फसल अच्छी होंगी।
बिना जुताई के कैसे अच्छी होती हैं खेत मे उगने वाली फसल?
इसमें खेत की जुताई बिलकुल भी नहीं की जाती हैं। फसल कटने के बाद खेत को ऐसी हीं कुछ समय के लिए छोड़ देते हैं। परन्तु, इसमें बहुत ज़्यादा हीं केमिकल का इस्तेमाल करना पड़ता हैं। ताकि उससे फसल अच्छी हो और कोई भी कीड़े-मकोड़े हो तो वह भी मर जाए। जो की ज़मीन के लिये और अनाज के लिये बिलकुल भी सही नहीं मना जाता हैं। परन्तु, इसके अलावा यह भी एक बहुत हीं शानदार तरीका हो सकता हैं , जो उन्होंने अपनाया और करके दिखाया हैं।
अंत मे उन्होंने सिर्फ इतना हीं बताया कि अगर यह तकनीक सफल होती हैं। तो वह अन्य किसानो को भी इसको इस्तेमाल करने का तरीका सिखाएंगे। यह एक बहुत ही अच्छी तकनीक हैं और आने वाले समय के लिए यह बहुत हीं ज़्यादा जरुरतमंद भी साबित हो सकती हैं। अगर सब कुछ सही रहा तो भारत मे पहली बर इस तरीके की किसानी का सफल नमूना देखा जाएगा। इसके अलावा यह बहुत प्रभावशाली भी होंगी क्योकि इसको एक गरीब किसान भी अपना सकता हैं। займы без отказа