कहते हैं कि दुनिया बड़ी तेज है। और इस तेजी से बदलती दुनिया ने बहुतों को बदला है। कभी वो भी दौर थे जब एक टीवी से सारा गांव रामायण देखता था। पीसीओ के बाहर बम्बईया बाबूओं के फोन का लम्बा इंतजार होता था। गावों के भोज में भी लम्बी- लम्बी पंगतों में भोजन दोने – पत्तलों में मिलता था।
पर साहब अब तो जमाना बदल गया है। और इस बदलते जमाने में जिन्होंने खुद को नहीं बदला , ज़माने ने उन्हें चलन से बाहर कर दिया। अब तो किसी के पास न तो समय है और न ही जरूरत। क्योंकि जमाना स्मार्टफोन का है। अब तो फोन का घंटों इंतजार तो दूर की बात है , बदलते वक़्त ने इन्हे ही चलन से बाहर कर दिया है। अब पंगतें नहीं लगतीं क्योंकि लोग सभ्य हो गए हैं , अब वे खड़े होकर खाते हैं। अब दोने – पत्तल गरीबी की निशानी माने जाते हैं , इसलिए भोजन भी थर्मोकोल या प्लास्टिक की प्लेटों में परोसा जाता है।
साहब इन पत्तलों की भी क्या बात करें। कभी तो वक़्त था कि इनके बिना कोई धार्मिक, सांस्कृतिक या सामाजिक उत्सव पूरा ही नहीं होता था। पत्तल भी क्या खूब होते थे। बिलकुल गोल गोल। इनमे एक साथ तीन चार तरह के व्यंजन परोसे जा सकते थे। खाने के बाद इसे फेंक दो। इससे पर्यावरण को भी कोई क्षति नहीं होती थी।
यह परम्परा सदियों से चली आ रही है। आपको ये जानकर हैरत होगी कि एक ज़माने में 20 हजार से भी अधिक किस्म की पत्तियों से पत्तल बना करते थे। हमारे ग्रंथों में भी केले के पत्तों पर भोजन करने की परम्परा का वर्णन मिलता है। परन्तु अब यह फाइव स्टार होटलों में देखने को मिलता है। जहाँ लोग महगा शुल्क देकर भी चाव से खाते हैं।
Leaf Republic ने शुरू किया पत्तलों का बिजनेस
जर्मनी में एक स्टार्टअप है, Leaf Republic नाम का। यह कंपनी पेड़ों के पत्तों से बने दोने -पत्तलों का निर्माण करती है। इन्होने इसके लिए फैक्ट्री भी डाल रखी है। और बाकायदा मशीनों के जरिये तेजी से बड़ी संख्या में इनका उत्पादन कर रहे हैं। उन्होंने इसके लिए फंडिंग भी जुटा ली है। इनका व्यापर भी खूब फल- फूल रहा है। इन्होने अलग अलग डिज़ाइन वाले दोने – पत्तलों को बाजार में उतारा है। और वे इनकी बिक्री ऑनलाइन भी कर रहे हैं।
जहाँ एक ओर इसे लेकर पर्यावरण प्रेमियों ने कंपनी की सराहना की है तो वहीँ आम उपभोक्ताओं से भी कंपनी को अच्छा रेस्पॉन्स मिल रहा है। कंपनी का दावा है कि ये पत्तल प्लास्टिक के पत्तलों जितने ही मजबूत हैं और पूरी तरह से ईकोफ्रेंडली भी हैं क्योंकि इनके अपघटित होने में अधिक समय नहीं लगता है। पिछले कुछ सालों से इन पत्तलों की मांग जर्मनी के होटलों में काफी बढ़ गयी है। बिजनेस इतना बढ़ चला है कि कंपनी इन दोने – पत्तलों को विदेशों में भी निर्यात कर रही है। हालाँकि यह भारत के लोगों के लिए ये काफी महँगा सौदा है। क्योंकि इनकी कीमत अमूमन 600-650 तक है।
पत्तलों पर भोजन के लाभ
पत्तों से निर्मित पत्तलों पर भोजन के अनगिनत लाभ बताये गए हैं। शास्त्रों में अलग अलग प्रकृति एवं औषधीय गुणों से युक्त पत्तों के पत्तलों के बारे में बताया गया है। मसलन यदि कोई केले के पत्ते पर भोजन करता है तो उसे चाँदी के पात्र में भोजन करने जितना लाभ मिलता है। इसी प्रकार ऐसे लोग जो रक्त के अशुद्ध होने के कारण विविध बीमारियों से ग्रसित हैं या जिन्हे पाचन सम्बन्धी समस्याएं हैं उन्हें पलाश के पत्तों से निर्मित पत्तलों में भोजन करने की सलाह दी जाती है। इसी तरह लकवाग्रस्त लोगों को अमलतास के पत्तों से निर्मित पत्तलों में भोजन करने की सलाह दी जाती है।
जहाँ आज उत्तर भारत में पत्तलों पर भोजन करने का रिवाज खत्म होता जा रहा है वहीँ दक्षिण भारत में आज भी आम भोज से लेकर बड़े- बड़े होटलों तक में केले के पत्तों पर भोजन परोसने का प्रचलन है। वहां के लोगों ने आज भी अपनी परम्पराओं को जीवित रखा है और उस पर आधुनिकता की आंच नहीं आने दी है। केरल में तो आज भी प्रसिद्ध त्यौहार ओणम के दिन सभी लोग मिलकर स्वादिष्ट व्यंजनों को केले के पत्तों पर ग्रहण करते हैं। займ на карту
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