संत ने सेठ को पीने के लिए दूध दिया, सेठ ने कहा कि ये तो कड़वा है….

क्रोध द्वारा वाणी की कड़वाहट

क्रोध के जन्म लेते ही विचार करने कि शक्ति चली जाती है। एक अन्धकार सा छा जाता है, जीवन बिखर जाता है। क्रोध में सबसे ज्यादा नुकसान जिह्वा से निकले शब्दों से होता है। सालो के रिश्ते इस क्रोध के कारण टूट जाते है।

क्रोध के समय वाणी पर संयम सबसे अनिवार्य होता है। क्षण भर का क्रोध, दीर्घकालीन परिणाम देता है। क्रोध में कही गयी बाते, कई बार दूसरे के मन को ठेस पंहुचा देती है।

चलिए इस सम्बन्ध में एक प्रचलित लोककथा देखते है

कथा के अनुसार एक नगर में, एक सेठ रहता था। वैसे तो वह सेठ काफी समृद्ध था लेकिन उसे छोटी छोटी बातो पर क्रोध आ जाता था, और वह लोगो को भला – बुरा बोलना प्रारम्भ कर देता था, इस कारण लोग उसे ज्यादा पसंद नहीं करते थे। वह कई बार क्रोध में सोचने समझने की शक्ति को त्यागते हुए, बिना अच्छे बुरे का ध्यान रखे, ऐसी बाते बोल देता था जिससे लोगो को पीड़ा होती थी, यही कारण था कि सब उससे परेशान रहते थे।

उन दिनों उस नगर में एक संत आए हुए थे। लोगो ने जाकर अपनी परेशानी उस संत को बतलायी, संत ने उस सेठ को मिलने के लिए अपने आश्रम की ओर से बुलावा भेजा। बुलावा पाकर सेठ हैरान तो था लेकिन उसने सोचा स्वयं महात्मा ने बुलाया तो ना जाना उचित नहीं होगा, इसलिए वह संत से मिलने आश्रम पहुंच गया। वहां पहुंचते ही सेठ ने संत को प्रणाम किया व उनसे आशीर्वाद लिया।

इसके बाद सेठ ने उस बुलावे का आशय जानने हेतु संत से प्रश्न किया कि ” हे महात्मा ! आपका बुलावा पाना मेरे लिए हर्ष की बात है, लेकिन इसका अभिप्राय क्या है यह मैं समझ नहीं सका। ”

संत ने कहा ” तुम्हे यहाँ बुलाने का आशय कुछ समय में स्वयं ही स्पष्ट हो जाएगा, लेकिन उससे पहले हमारे यहाँ की गाय का ताज़ा दूध पीयो एवं हमारा आथित्य स्वीकार करो। ” यह कहते हुए संत ने सेठ की ओर दूध से भरा एक पात्र खिसका दिया।

जैसे ही सेठ ने दूध चखा, उसे उसके कड़वे स्वाद की अनुभूति हुई। इस बात से वह गुस्सा हो गया, उसने पात्र फेकते हुए कहा ” यह दूध तो कड़वा है, आप इसे किसी को भी पीने के लिए कैसे दे सकते है ” इस पर संत बोले ” क्या सच में तुम्हारी जीभ को कड़वाहट का आभास होता है। क्या तुम जानते हो कड़वा क्या होता है ?”  सेठ बोला ” कड़वे स्वाद के विषय में तो सबको पता होता है। जीभ पर आते ही इसके विषय में पता चल जाता है, इसमें इतने आश्चर्य की क्या बात? ” संत ने बतलाया ” यह हर बार संभव नहीं, कई बार लोगो को कड़वाहट का पता नहीं चलता। अगर हर बार इसका एहसास होता तो लोग कड़वे वचन ही क्यों बोलते ?” ।

सेठ को सारी बात समझ में आ गयी थी। उसे संत द्वारा बुलावे का अभिप्राय भी समझ आ गया था। उसने हाथ जोड़कर संत से क्षमा मांगी और कहा ” हे महातम ! आपने मेरी आँखे खोल दी है, आज मुझे अपनी भूल का एहसास हुआ है। मैं आज आपके समक्ष संकल्प लेता हूँ कि मैं अपने क्रोध पर नियंत्रण रखने का पूर्ण प्रयत्न करूंगा। ”

संत ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा ” क्रोध पर नियंत्रण रखने के साथ – साथ इस बात का भी ध्यान देना आवश्यक है कि क्रोध के समय मौन धारण करना ही सबसे अच्छा विकल्प होता है। इससे रिश्तो में दरार नहीं आती। क्रोध के समय जिह्वा पर नियंत्रण न रखने से जीब उसी प्रकार गन्दी हो जाती है जिस प्रकार अभी यह कड़वा दूध पीने से हुयी थी “।

इस घटना से वहां मौजूद सभी लोगो को सीख मिली, एवं इसके पश्चात सब संत को प्रणाम करके अपने – अपने घरो की ओर चल दिए। займ на карту


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