"कुत्ते भोंकते रहते हैं पर हाथी को फर्क नहीं पड़ना चाहिए"

दर्शकों, आज हम आपके समक्ष एक कहानी प्रस्तुत करने जा रहे हैं। यह कहानी एक बहुत हीं पुरानी कहावत को सच साबित करती है। वह मशहूर कहावत जिसकी हम बात कर रहे है ,वो हैं:

“कुत्ते भोंकते रहते हैं पर हाथी को फर्क नहीं पड़ना चाहिए”

एक बार की बात है, एक ऋषि मुनि अपने शिष्य के साथ वन में भ्रमण कर रहे थे। वह बहुत दिनों से भ्रमण कर रहे थे। इसी वजह से वह दोनों बहुत थक गए थे।वह चलते जा रहे थे,तभी रास्ते मे उनको एक छोटा सा गांव दिखा। उन्होंने कुछ दिन के लिए उस गांव में रुकने की सोची। वह उस गांव के वासियों से मदद मांगने चल दिए। इसी बीच उनकी बहुत लोगो से भेट हुई और उन्होंने उनके समक्ष अपनी चिंता रखी। गांव वाले उनकी सहायता करने के लिए मान गए। मदद के तौर पर उन्होंने उन्हें कुटिया दे दी, जिसमें वह अपने शिष्य के साथ आराम से रह सकते थे। साथ ही साथ उन्होंने उनके खाने का भी इंतजाम कर दिया।

इसी के चलते ऋषि मुनि ने यह सोचा कि यह लोग हमारे लिए इतना कर रहे हैं। बदले में हम भी इनको कुछ उपहार देना चाहिए। तब उन्होंने गांव वासियो को उपहार के रूप मे विद्या दान करने की सोची। उन्होंने अपने शिष्य से कहा कि जाकर गांव वासियों को यह बात बता दो कि वह हमारे प्रवचन सुनने के लिए आए।

यह बात सुनकर लोग उत्सुक हो गए और दूसरे गांव के भी लोग उनके प्रवचन सुनने के लिए आने लगे। परंतु, कुछ ऐसे भी लोग थे जिनको इस चीज से बहुत दिक्कत थी। वह लोग पास वाले गांव के पंडित थे। उनको लगा कि मुनि के आने की वजह से उनके प्रवचन सुनने वाली भीड़ बहुत कम हो गई हैं। उन्होंने संगठन बनाया और यह निर्णय लिया कि हम लोग मुनि की बुराई करेंगे। इसके चलते वह लोगों के मन से उतर जाएगा और लोग हमारे पास वापस आ जाएंगे। उन्होंने ऐसा करना शुरू कर दिया। एक दिन शिष्य को यह बात पता चली, उन्होंने तुरंत जाकर ऋषि मुनि को बताया।

मुनि ने उन्हें प्यार से समझाया कि तुम्हारे ऐसा करने से कुछ भी नहीं होगा। उनका बुराई करना कभी नहीं रुकेगा और वह ऐसे ही बुराई करते रहेंगे। उस समय उन्होंने अपने शिष्य को एक नया पाठ पढ़ाया। उन्होंने कहा बालक हमेशा ध्यान रखो, कुत्ते भोंकते रहते हैं परन्तु हाथी को फर्क नहीं पड़ना चाहिए। हाथी अपनी राह चलता जाता है और कुत्ते भोंकते-भोंकते थक जाते हैं। फिर वह वापस चले जाते हो और हाथी अपने रास्ते चला जाता है। इसी बात को ध्यान रखते हुए तुम भी उनकी बातों पर ध्यान ना दो।

अंत में जो पंडित उनकी बुराई कर रहे थे, उन्होंने हार मान ली। वह मुनि के पास आए और उन्होंने उनसे कहा हे मुनिवर! हमें माफ कर दीजिये। हमसे बहुत बड़ी भूल हुई हैं। हमने आपके साथ बहुत बुरा किया और आपने बदले मे कुछ भी नहीं किया। मुनि ने यह बात सुनकर उनको माफ कर दिया और उनको अपना लिया। займ онлайн на карту без отказа


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