भारत की आजादी में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं ने भी अपना अहम योगदान दिया है। पुरुषों की तरह महिलाओं के खून पसीने ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ाए थे। वह साहस, वह शक्ति, वह हिम्मत, वह जुनून ही था कि भारत माता की आजादी के लिए अपने प्राणों को भी न्योछावर करने से हमारी महिला स्वतंत्रता सेनानियां तनिक सा भी नहीं कतराती थी।
बेगम रुक़य्या, सरोजिनी नायडू, कित्तूर रानी चेन्नम्मा, झलकारी बाई, सावित्रीबाई फुले, और स्वतंत्रता संग्राम कि आग फूंकने वाली रानी लक्ष्मीबाई आदि ऐसी कई अनेक नायिकाओं ने अपने खून पसीने से इस धरती को सीचा है। इन्हीं नायिकाओं में से एक थी दुर्गावती वोहरा जिन्हें हम दुर्गा भाभी के नाम से भी जानते हैं। दुर्गा भाभी भारत की आजादी के लिए अपनी जिंदगी तक को दांव में लगाने से नहीं कतराती थी। अंग्रेजों से चार – चार हांथ करने के लिए उनका खून उबाल मारता था।
दुर्गा भाभी का परिचय
दुर्गावती वोहरा यानी दुर्गा भाभी जी का जन्म 7 अक्टूबर 1902 को पुराने इलाहाबाद और वर्तमान प्रयागराज में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित बांके बिहारी था। पिता और बाबा अंग्रेजी हुकूमत के लिए काम करते थे। पिता और बाबा भले ही अंग्रेजों की सरकारी नौकरी करते थे, लेकिन दुर्गावती के दिल और दिमाग में देश को अंग्रेजों के चंगुलों से आजाद कराने की ललक थी।
उस समय औरतों और स्त्रियों की शादी बहुत ही कम उम्र में कर दी जाती थी। कुछ ऐसा ही दुर्गावती के घर वालों ने किया। उन्होंने दुर्गावती की शादी महज 10 साल की उम्र में ही कर दी थी । दुर्गावती के पति का नाम भगवती चरण वोहरा था। दुर्गावती के पति भगवती चरण वोहरा भी आजादी की प्यास के लिए तरस रहे थे । उनके रगों में भी देशभक्ति का खून दौड़ रहा था। और उन्होंने भी देश को अंग्रेजों से मुक्त कराने में दुर्गावती के साथ मिलकर अपनी अहम भूमिका निभाई थी।
पति और पत्नी की विचारधारा मिलती थी

दुर्गावती और उनके पति भगवती चरण वोहरा दोनों की विचारधारा मिलती थी। दोनों के अंदर आजादी की ललक थी दोनों ही देश को आजाद करना चाहते थे। दुर्गावती को अन्य क्रांतिकारी दुर्गा भाभी के नाम से पुकारा करते थे। आजादी के लिए दुर्गा भाभी ने कई बार अपनी क्रांतिकारी टुकड़ी का नेतृत्व भी किया था। वह आज की महिलाओं के लिए रोल मॉडल तो हैं ही, साथ ही साथ आजादी के समय भी वह अन्य स्त्रियों और महिलाओं की रोल मॉडल हुआ करती थी। वह स्त्री और महिलाओं के अंदर देश प्रेम की भावना को जागृत किया करती थी ताकि आजादी के लिए पूरा देश इकट्ठा हो सके।
दुर्गावती भाभी के बहादुरी के किस्से पूरे भारत में विख्यात हैं। युद्ध करने में उनको मानो महारत हासिल थी। उनकेे रगों में आजादी का खोलता खून दौड़ रहा था, वह खून अंग्रेजों की जान का प्यासा था। और कुछ ऐसा ही 9 अक्टूबर 1930 को हुआ था। जब उन्होंने अंग्रेज गवर्नर हैली पर निडर होकर हमला किया था। उनका यह साहस देखकर गवर्नर हैली भी हैरान हो गए थे। हालांकि जब दुर्गा भाभी ने गवर्नर हैली पर गोली चलाई थी तो वह बच गए थे क्योंकि वह गोली उनके बगल खड़े उनके सैनिक अधिकारी को लग गई थी।
अचूक निशाना
दुर्गा भाभी का निशाना इतना अचूक था कि अंग्रेजी सिपाही उनके द्वारा चलाई गई गोलियों से बच नहीं पाते थे। दुर्गा भाभी को बंदूक चलाने में महारत हासिल थी। एक किस्सा आपको बताते हैं । आप क्रांतिकारी और शहीदे आजम चंद्रशेखर आजाद का नाम तो जानते ही होंगे। जब उनकी अंग्रेजों से भिड़ंत हुई थी तब वह प्रयागराज के एक पार्क में थे जो अब चंद्र शेखर आजाद पार्क के नाम से जाना जाता है । उस समय चंद्र शेखर आजाद के साथी उनसे दूर थे और उन्हें अंग्रेजों ने घेर लिया था। उनके पास एक ही पिस्तौल थी जिसमें मात्र एक ही गोली थी । और उस वक्त चंद्र शेखर आजाद ने अंग्रेजों के हाथों से मरने की बजाए खुद के हाथों से ख़ुद को मारना उचित समझा था। और उस बची हुई गोली को उन्होंने अपने माथे पर उतार दिया था। आप जानते हैं वह पिस्तौल से चंद्रशेखर आजाद ने खुद को गोली मारकर अंग्रेजों को नतमस्तक किया था, चंद्रशेखर आजाद। वह पिस्तौल दुर्गा भाभी ने ही दी थी।
भगत सिंह की पत्नी बनी दुर्गावती
शायद आप दुर्गा भाभी और भगत सिंह का एक किस्सा ना सुने हों। जब दुर्गा भाभी शहीद-ए-आजम भगत सिंह की पत्नी बनी थी। अंग्रेजों के मिशन को फेल करने के लिए दुर्गा भाभी ने भगत सिंह की पत्नी का किरदार निभाया था। अंग्रेज उस समय क्रांतिकारियों को ढूंढ रहे थे। क्योंकि शहीदे आजम भगत सिंह और सुखदेव ने अंग्रेजी अफसर जान सांडर्स को मौत के घाट उतार दिया था। और उस समय पुलिस से बचाने के लिए दुर्गा भाभी ने अपना भी हुलिया बदला और शहीद ए आजम भगत सिंह का भी हुलिया बदलावाया और फिर उनकी पत्नी बनकर उनके साथ यात्रा की थी। दुर्गा भाभी ने अपना पूरा हुलिया ऐसे बदल दिया था मानो ऐसा लग रहा था कि वह सच में शहीद ए आजम भगत सिंह की पत्नी हैं। इस सफर में राजगुरु चंद्र शेखर आजाद समेत और अन्य क्रांतिकारी भी उनके साथ थे। भाभी आजादी के लिए उतावली थी। वह क्रांतिकारियों के साथ कदम मिलाकर चलती थी। इन वीर क्रांतिकारियों के साथ वह हमेशा ढाल बनकर खड़ी रहा करती थी।
भाभी का घर क्रांतिकारियों का घर था
दुर्गा भाभी का घर एक प्रकार से क्रांतिकारियों का घर बन गया था। क्रांतिकारी यहीं आकर अंग्रेजों से लड़ने की योजना बनाते थे। दुर्गा भाभी का लहू मानो आजादी के लिए बेचैन था। अंग्रेजों से दो-दो हाथ करने में तनिक सा भी नहीं कतराती थी। बस उनको चाहिए थी आजादी!
पति का निधन और एक नया युग
दुर्गावती के पति भगवती चरण वोहरा ने भी उनकी लड़ाई में उनका अहम साथ दिया था। वह भगत सिंह को जेल से छुड़वाने के लिए बम बना रहे थे और बम बनाने के बाद जब उन्होंने उसका परीक्षण किया तो बम अचानक फट गया जिसकी वजह से भगवती चरण वोहरा शहीद हो गए । अब दुर्गावती अकेली हो गई थी लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और एक नया सफर शुरू किया।
पति के शहीद होने के बाद उन्होंने अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को रोका नहीं अपितु उन्हें और तेजी के साथ आगे बढ़ाया। उन्होंने भगत सिंह की रिहाई के लिए लाहौर में एक जुलूस का नेतृत्व किया था क्योंकि भगत सिंह को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। भगत सिंह को जेल से झुड़वाने के लिए उन्होंने जुलूस निकाला था।
आजादी की लड़ाई में दुर्गा भाभी तो शामिल ही थी इसके साथ ही उन्होंने शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए मांटेसरी स्कूल भी खोला था। उनके स्कूल खोलने वाले कदम को सुनकर 1956 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने खुद दुर्गा भाभी से मुलाकात की थी।
आजादी में अपना अहम योगदान देने वाली दुर्गावती बोहरा ने 15 अक्टूबर 1999 को इस दुनिया से अलविदा कह दिया। दुर्गा भाभी के संघर्ष और देश को आजाद कराने के लिए किए गए कार्य को हमेशा याद किया जाएगा।
देश की आज़ादी के लिए मर-मिटने वाली ऐसी वीरांगनाओं को कोटि कोटि प्रणाम!
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