भारत में अक्सर छोटे और गरीब किसानों को बहुत तकलीफ़ उठानी पड़ती है। लेकिन जब ये तकलीफ़ आपस में समझौता कर ले तो तकलीफे, खुशियां बन जाती हैं। छोटे किसानों के पास खेती करने के लिए बहुत कम जमीन होती है, जिसके चलते वह न तो मुनाफा ही कमा पाते हैं और न ही खुद के खाने के लिए अनाज उगा पाते हैं। लेकिन जब यही छोटे किसान साथ मिलकर खेती करते हैं, तो एक बड़े और नए किसान का जन्म हो जाता है जिसे हम सामूहिक किसान कहते हैं। सामूहिक किसानी में सभी छोटे – बड़े किसान मालिक होते हैं और ऐसे में उनका कोई प्रतिद्वंदी भी नहीं होता।
सामूहिक किसानी की ऐसी ही झलक छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में देखने को मिलती है। इस जिले के कई किसान अपना समूह बनाकर एक साथ खेती करते हैं और बराबर मुनाफा और नफा कमाते हैं। जिले के कृषि महाविद्यालय और अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों ने इन किसानों को नई राह दी। कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों ने ही छोटे किसानों को यह तरकीप बताई और उन्हें खेती में उपयोग किए जाने वाले उपयोगी रसायनों के बारे में भी बताया जिससे इन छोटे और सीमांत किसानों की तकलीफ़ दूर हो गई और ये किसान नए आयाम हासिल कर रहे हैं।
सफलता का राज सामूहिक खेती
छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के भोंड गांव के करीब 173 छोटे किसानों ने अपनी जमीन को एक कर दिया। इन किसानों की जमीन के छोटे – छोटे टुकड़े मिलकर करीब 200 एकड़ की भूमि में तब्दील हो गए। और इन किसानों ने जब 200 एकड़ की भूमि में साथ मिलकर खेती की तो परिणाम किसानों के अनकूल रहा। इन किसानों को सामूहिक खेती करने से बड़ी सफ़लता हासिल हुई है। सामूहिक खेती करके सभी किसानों ने अच्छा खासा मुनाफा कमा रहे हैं।
वैज्ञानिकों की पहल पर शुरू की सामूहिक खेती
बस्तर जिले के भोंड गांव के किसानों को सामूहिक खेती करने के लिए वहां के पास के कृषि महाविद्यालय के वैज्ञानिकों ने सुझाव दिए थे। सुझाव ही नहीं बल्कि ये वैज्ञानिक किसानों की मदद भी कर रहे हैं। वैज्ञानिकों ने किसानों को बताया कि किस तरह मक्का, चना, गेहूं और सब्जियों की खेती की जाए जिससे गुणवत्ता के साथ उत्पादन भी अधिक हो । कृषि अनुसंधान के वैज्ञानिकों के सहयोग से आज बस्तर जिले के भोंड गांव के किसान किसानी की नई परिभाषा लिख रहे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2019 में किसानों ने 30 एकड़ में मक्का, 25 एकड़ में चना, 20 एकड़ में गेहूं और 20 एकड़ में सब्जियों की खेती की थी जिससे उन्हें लाखो का फ़ायदा हुआ था। और उन्होंने इन फसलों का चुनाव कृषि वैज्ञानिक की सलाह पर ही किया था। सामूहिक खेती कर अपनी अलग पहचान बनाने वाले ये किसान आज देश के सीमांत और छोटे किसानों के प्रेरणा स्रोत बन चुके हैं। एक रिपोर्ट में बताया गया है कि इस योजना के तहत करीब 200 एकड़ में खेती करने के लिए 70 से 75 लाख रुपए की लागत लगती है। सारे किसान मिलकर लागत की राशि देते हैं और फसल से जो मुनाफा मिलता है उसे बांट लेते हैं।
इस योजना को मूल रूप देने का श्रेय कृष अनुसंधान के वैज्ञानिकों को जाता है। कृषि अनुसंधान के वैज्ञानिकों ने ही छोटे किसानों को सामूहिक खेती करने के लिए प्रेरित किया है। आज यह सामूहिक योजना छोटे किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं!
देश के अलग – अलग प्रदेशों के अलग – अलग जिलों से किसानों से संबंधित दुखद घटनाएं मीडिया के माध्यम से हम तक पहुंचती रहती हैं। खासकर छोटे किसानों के लिए खेती करना किसी पहाड़ को तोड़ने जैसा साबित होता है। क्योंकि छोटे किसानों के पास पहले न तो खेती करने के लिए पर्याप्त पैसा होता है अगर किसी तरह पैसों का इंतजाम भी हो जाए तो फसल साथ नहीं देती। ऐसे में छोटे किसान बड़ा कदम उठा लेते हैं और अपनी आत्महत्या करने पर उतारू हो जाते हैं। उन छोटे किसानों भाइयों के लिए यही सही होगा कि वे सामूहिक खेती कर अपनी समस्या से निजाद पाए।
सरकार समय – समय पर किसानों के लिए नई-नई योजना लाती रहती हैं। लेकिन सरकार जो योजनाएं लाती है वह जमीनी स्तर पर पूर्ण रूप से लागू नहीं हो पाती जिसके चलते छोटे किसान सरकार की बड़ी – बड़ी योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाते हैं। और ऐसे में छोटे किसान गरीबी के अन्धकार में धसतें चले जाते हैं। हालांकि अब धीरे – धीरे करके भारत सरकार एक ऐसे सिस्टम का निर्माण कर रही है जिससे सरकार की योजनाओं का सीधा लाभ गरीब किसानो को मिल सके। छोटे किसान भाई सरकार की योजनाओं का लाभ उठाकर एक साथ सामूहिक खेती कर सकते हैं। सामूहिक किसानी धीरे – धीरे ट्रेंड बन जाएगा। अभी तो बस सामूहिक खेती की शुरुआत ही हुई है। एक समय आएगा जब पूरी दुनिया भारत के किसानों की गाथा गाएगी। भारत का विश्व गुरु बनने का सपना हमारे किसान भाई ही पूर्ण करेंगे। हमारे किसान भाई ही भारत को विश्व गुरु बनाएगें!
सामूहिक खेती करने को लेकर आपकी क्या राय है, कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं हमें आपके सुझावों का इंतजार है! buy over the counter medicines
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