1960 के दशक में भारत में ग्रीन रेवोलुशन यानी हरित क्रांति स्टार्ट हुई और 1970 आते-आते ग्रीन रिवॉल्यूशन पूरे भारत में फैल गया था। ग्रीन रिवॉल्यूशन के दौरान HYV बीज, फर्टिलाइजर्स और कीटनाशकों का बहुत ज्यादा उपयोग हुआ। फर्टिलाइजर्स का उपयोग उत्पाद को बढ़ाने के लिए होता है, जिससे फसल जल्दी तैयार हो जाती है। परंतु वैज्ञानिकों ने शोध करके बताया कि यह फर्टिलाइजर्स का हमारे शरीर पर बहुत ज्यादा दुष्प्रभाव पड़ता है।
फर्टिलाइजर्स और कीटनाशक में मिले हुए केमिकल, फसल द्वारा हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं तथा बहुत सारे बीमारियों का कारण बनते हैं। शोध में यह भी पता चला कि यह फर्टिलाइजर और कीटनाशक धीरे-धीरे खेती की जमीन को बंजर और बेजान बना देते हैं। परंतु आज हमारे पास फर्टिलाइजर और कीटनाशक का बहुत अच्छा विकल्प मौजूद है, जो है, ऑर्गेनिक फार्मिंग यानी जैविक खेती। आज 21वीं सदी में हम सब जैविक खेती की तरफ देख रहे हैं ताकि हमें बेहतर उत्पाद मिल सके और हम स्वस्थ रह सकें।
आज हम इस लेख में एक ऐसी प्रतिभावान और मेहनती महिला के बारे में बात करेंगे, जिन्होंने ऑर्गेनिक तरीके से खेती करके यह दिखा दिया है कि हमें अपनी फसलों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए रसायनों की जरूरत नहीं पड़ेगी। इस महिला का नाम है ललिता मुकाती।
ललिता मुकाती मध्यप्रदेश के बड़वानी जिले के बोड़लाई मैं रहती है। उन्होंने 2015 से जैविक खेती की शुरुआत कि, और अब 5 साल बाद ललिता आज खेती से महीने में लगभग 80,000 कमा रही हैं। ललिता बताती हैं, उनके पति ने एमएससी एग्रीकल्चर की डिग्री लेकर जैविक खेती शुरू की, जिसके बाद वह अपने पति के काम को समझती रही और उसमें अपनी पति कि मदद करने लगी । अपने इस काम की शुरुआत मैं उन्होंने नींबू , सीताफल ,केला ,इत्यादि लगाया और उन्होंने इस बात का पूर्ण ध्यान रखा वह इन सब को उगाते हुए किसी भी तरह के पेस्टिसाइड का उदयोग नहीं करती थी | उन्होंने इसका इस्तेमाल ना करते हुए बहुत पैसे बचाए और सिर्फ ऑर्गेनिक चीजों का इस्तेमाल किया| अगर आप भी एक उभरते हुए उद्योगी है तो आप इनसे सीख ले सकते हैं।
ललिता और उनके पति ने मध्यप्रदेश प्रशासन की योजना के तहत जर्मनी और इटली जाकर आधुनिक व उन्नत खेती के तरीके भी सीखे हैं। साथ ही जिले के कृषि विज्ञान केंद्र व देश के कई स्थानों पर जैविक खेती की कार्यशाला व प्रशिक्षण में भाग लिया है। यही नहीं वे अपने गांव की महिलाओं का समूह बनाकर उन्हें भी जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं।
ललिता को प्रोत्साहन तब मिला, जब उन्होंने 36 एकड़ खेत में जैविक चीजों के इस्तेमाल से चीकू, सीताफल और कपास का रिकॉर्ड उत्पादन कर दिखाया। साल 2016 में उन्हें एमपी बायोलॉजिकल सर्टिफिकेट (MP BIOLOGICAL CERTIFICATE) भी प्रदान किया गया जिसके बाद वह दूसरे राज्यों में अपनी फसल आसानी से भेज सकती हैं, और आज वह अपनी फसल मध्य प्रदेश के अलावा महाराष्ट्र, गुजरात और दिल्ली में बेचती हैं। ललिता ने कहा है कि हर साल वह जैविक परीक्षण करती है और बहुत ही जल्द वह भारत से बाहर भी अपनी फसल को भेजने लगेगी। ललिता को फसल से लगभग डेढ़ गुना फायदा हो जाता है उनके सीताफल महाराष्ट्र और गुजरात में खूब बिकते हैं।
ललीता जी को 12 महिलाओं की लिस्ट में शामिल किया गया जो ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा दे रही है इन सब महिलाओं को प्रधानमंत्री पुरस्कार से भी नवाजा गया और इन्हें विदेश अध्ययन योजना के तहत विदेशी किसानों को खेती समझने के लिए दूसरे देश में भेजा जाएगा। उन्होंने एक संगठन की शुरुआत भी की जिसके माध्यम से वह लोगों को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित करती रही है|
ललिता का कहना है कि –
“मैं लोगों को बताना चाहती हूं कि केमिकल वाली खेती हमारे लिए कितनी खतरनाक है और जैविक खेती से हमें क्या क्या लाभ हो सकता है”।
जैविक खेती की सफलता के बाद, ललिता बिना मिट्टी वाली खेती का विचार बना रही है और इसके लिए वह पानी की छोटी छोटी थैलियों का इस्तेमाल कर रही है। ललिता ने बायोगैस और सोलर पैनल का इस्तेमाल कर रही हैं।
ललिता मुकाती की कहानी सबको बहुत प्रभावित और प्रोत्साहित करती है और यह कहानी उन किसानों के लिए मिसाल है जो जैविक खेती करना चाहते हैं। हम उन्हें आगे के भविष्य के लिए शुभकामनाएं देते हैं और यह कामना करते हैं कि उनकी इस शैली को सारे किसान अपनाएं और जैविक खेती को भारत में बढ़ावा मिले।
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