अप्रैल महीने में देश एक तरफ कोरोना वायरस से फैल रही महामारी से जूझ रहा था, वही दूसरी तरफ देश की पश्चिमी सीमा से एक और मुसीबत टिड्डी दल के रूप में पाकिस्तान से उड़कर देश में आ गयी। पिछले 26 सालों में यह टिड्डी हमला सबसे भयानक है। अब की बार टिड्डी दल उड़ते हुए बिहार तक पहुँच चुके हैं।
इससे पहले साधारणतया देश के पश्चिम राज्य ही इनसे प्रभावित होते थे एक अनुमान के मुताबिक करीब 15 से 20 लाख एकड़ फसल अब तक प्रभावित हो चुकी है। टिड्डी से सबसे ज्यादा प्रभावित हमारे किसान हुऐ, जोकि कोरोना वायरस के कारण हुए लाॅकडाउन से पहले ही नुकसान में थे। अब टिड्डी खेत में खड़ी उनकी फसलों को चट कर रही थी। अपनी मेहनत से उगाई फसल को बचाने के लिए किसान परंपरागत तरीके जैसे ढोल पीटना, तेज आवाज और रसायनों के छिड़काव कर रहे थे।
ऐसे में हैदराबाद के एक प्रगतिशील किसान और पद्मश्री पुरुस्कार से सम्मानित श्री पचिंतला वेंकट रेड्डी ने इन कीटों से बचने का नायाब तरीका इजाद किया। वर्ष 2004 में उन्होंने टिड्डों को भगाने के लिए एक आर्गेनिक तरीका निकाला जिसे वे मृदा रसायन (soul pesticide) कहते हैं।
रेड्डी कहते हैं हमें कीटों को भगाने या मारने के लिए पहले उनके बारे में विस्तृत जानकारी होनी चाहिए जैसे वे क्या खाते हैं, क्या नही। कौन सी चीजों से वे आकर्षित होते हैं, और कौन सी चीजों से वे दूर भागते हैं। वे कहते हैं कि यदि मेरे खेत में उनके खाने लायक कुछ नहीं होगा तो वे मेरे खेत से दूर ही रहेंगे। टिड्डियों के शरीर में लीवर नहीं होता है,जिससे वे मिट्टी को नही पचा सकते। रेड्डी ज्यादा पढ़े लिखे नही है, लेकिन उन्होंने खेती की बारीकियों को बहुत अच्छी तरह से सीखा है। रेड्डी मुख्य रूप से अंगूर की खेती करते हैं
रेड्डी बताते हैं कि कि उनका तरीका दो साधारण बातों पर आधारित है एक टिड्डियां कैसे खाती हैं और उनका प्रजनन किस प्रकार होता है। यदि खेत में खड़ी फसल उनके अनुकूल वातावरण नहीं बनाए तो वे उससे दूर ही रहेंगी। 69 वर्षीय रेड्डी अपने अनुभव को साझा करते हुए बताते हैं कि जैसे सेना आक्रमण करने से पहले पूरी जानकारी इकट्ठा करती है वैसे ही टिड्डी दल खेत पर आक्रमण करने से पहले फसल की पूरी जानकारी इकट्ठा करते हैं। यदि उन्हे खेत में उनके खाने लायक फसल नही मिलती तो वे आगे बढ़ जाते हैं।
रेड्डी ने साल 2012 में इस तकनीक का पेटेंट भी करा लिया था। रेड्डी ने अपनी इस तकनीक को राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश के हजारों किसानों के साथ साझा किया है। जिससे उन किसानों को फ़ायदा भी मिला है। लेकिन वे अपने साथी किसान भाईयों के साथ इस तकनीक को साझा करने के लिए कुछ भी नही लेते हैं। रेड्डी इसे अपनी खोज नही मानते हैं वे इसका श्रेय देश को देते हैं, वे कहते हैं कि यदि इससे किसान को फायदा हो रहा है तो समझिए कि देश को फायदा हो रहा है।
उन्होंने मिट्टी से पेस्टीसाइड बनाने का तरीक़ा बताया है जोकि बहुत ही साधारण है।
- अपने खेत की 2 इंच गहराई से 15 किलोग्राम मिट्टी और चार फीट गहराई से 15 किलो ग्राम मिट्टी को लेकर अलग-अलग धूप में सूखा लीजिए
- जब यह दोनों पूरी तरह से सूख जाएं तो 200 लीटर पानी में घोलकर जब विलयन स्थिर हो जाए तो एक कपड़े से छान लें और और घोल का छिड़काव फसलों में करें।
- इस घोल का छिड़काव हर 7 से 10 दिन पर करने से उत्पादन में तो बढ़ोत्तरी होती है, साथ में फसल कीट-पतंगो से बची रहती है। फसल के हिसाब से इसकी मात्रा कम ज्यादा की जा सकती है। परन्तु दोनों मिट्टी का अनुपात 1:1 ही होना चाहिये।
- छानने पर जो मिट्टी बचती है, उसका उपयोग पौध तैयार करने में किया जा सकता है।
- मिट्टी को गर्मी के दिनों में ज्यादा मात्रा में सुखाकर वर्ष भर उपयोग में लाया जा सकता है।