दानवीर बालक जो बड़ा होकर संत बना

एक समय की बात है किसी गाँव में एक निर्धन अपने पुत्र के साथ अपना जीवन किसी तरह गुज़र-बसर कर रहा था। पिता पूरे दिन हाँड़ तोड़ मेहनत करता तब जाकर दोनों को एक वक्त की रोटी नसीब हो पाती। एक दिन बेटे ने फल वाले को फल बेचते देखा और फल लेने की ज़िद करने लगा। पिता के पास फल खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। उसने अपने बेटे को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन बेटा ज़िद करता रहा और रोते रोते सो गया। अगले दिन पिता काम पर गया और पैसे लेकर वापस घर लौटा। अपने लाड़ले बेटे के हाथ में पैसे रखते हुए बोला, “जा बेटा बाजार से अपनी पसंद के फल ले आ”।

बच्चा बहुत खुश हुआ और उछलता हुआ बाजार को निकल गया। लेकिन बाजार के रास्ते में बैठे हुए ग़रीब भिखारियों को देख कर उसके कदम ठिठक कर रुक गये।

उनकी दशा बेहद दयनीय थी, तन पर फटे गले कपड़े थे। लगता था कि कई दिनों से एक निवाला भी नही मिला था। बालक का हृदय पसीज गया वह उन लोगों के पास गया और पूछा आप लोग यहाँ इस तरह किस लिए बैठे हैं। बूढ़े भिखारी ने अपनी लाचारी बता दी, “बेटा कई दिनों से न कोई काम ही मिला और न ही अन्न का एक दाना नसीब हुआ है”। बालक ने अपने हथेली में रखे पैसों की ओर देखा फिर वे सारे पैसे उन गरीब भिखारियों में बाँट दिए। सब भिखारी मन से उस बच्चे को लाखों दुआएं दे रहे थे। बच्चे के चेहरे पर अजीब सी प्रसन्नता थी। वह वहां से उल्टे पैर घर लौट आया। घर पहुंचा तो पिता ने पूछा कौन से फल ख़रीद कर लाया है। बच्चा बोला पिताजी मैं आज अमर फल ख़रीद कर लाया हूँ। पिता बोला दिखाओ तो कहा है, अमर फल?

बालक ने सारा वृतांत बता डाला और बोला पिताजी यदि मैं उन पैसों से फल ख़रीद कर लाता तो उनकी मिठास केवल कुछ समय के लिए रहती लेकिन ग़रीब लोगों की सेवा करने से मुझे जिस अमर फल की प्राप्ति हुई है उसकी मिठास कभी भी समाप्त नहीं होगी। पिता ने अपने बेटे की बात सुनकर उसे गले से लगा लिया। यही बालक आगे चलकर बहुत महान संत बना। займы на карту срочно


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