रामकृष्ण परमहंस के प्रेरक प्रसंग

रामकृष्ण परमहंस, जिन्हे हम सब जानते है स्वामी विवेकानंद जी के गुरु रूप में। उनका ज्ञान, काफी समय से हमे प्रेरणा देता रहा है। आज हम उनके जीवन से जुड़े तीन प्रसंग देखेंगे जो काफी प्रेरक है, एवं वे सफल जीवन के सूत्र भी बतलायेंगे।

पहला प्रेरक प्रसंग

एक बार जब रामकृष्ण परमहंस उपदेश दे रहे थे तब उन्होने शिष्य ने उनसे पूछा कि ” भक्ति में मन लगाना इतना मुश्किल क्यों होता है? हमारी इच्छा , हमारी व्याकुलता, हमारा मन ईश्वर को पाने के प्रति इतना ललायित नहीं रहता जितना यह सांसारिक वस्तुएं, मोह माया, भ्रम, आदि पाने के लिए इच्छुक रहता है। ईश्वर जो सत्य है, सर्वोच्च है, उनके प्रति निष्ठा और भक्ति कठिन क्यों है? ”

रामकृष्ण परमहंस ने अपने शिष्य से कहा कि ” इसका कारण सिर्फ अज्ञानता है। हमे सत्य पता है कि वह क्या है, फिर भी हम भ्रम की ओर खींचे चले जाते है, इसका कारण यह है की हमने मूल रूप से ईश्वर को जानने की कोशिश ही नहीं की कभी। अधिकतर लोग संसार की वस्तुओं में इतना संलिप्त हो जाते है की उनकी आँखो पर पर्दा पड़ जाता है, वह प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से सत्य नहीं जान पाते। सांसारिक चीज़ो के कारण भगवान के प्रति ध्यान नहीं दे पाते। ”

शिष्य पूछता है कि ” किस प्रकार हम इस भ्रम और मोह माया से दूर रह सकते है ?”

रामकृष्ण जवाब देते है कि ” इंसान की भोग इच्छा जब तक समाप्त नहीं होती तब तक वह ईश्वर के निकट नहीं पहुंच सकता। जिस प्रकार एक बच्चा जब तक अपने खिलौने में संलिप्त रहता है, तब तक उसे अपनी माँ की याद नहीं आती है। जैसे ही उसका मन खिलौनों से भर जाता है तब उसे माँ का स्मरण हो जाता है। ठीक इसी प्रकार जब तक मनुष्य अपनी भोग और वासनाओं से बाहर नहीं आ जाता तब तक वह ईश्वर के समीप नहीं पहुंच सकता। इसका एक मात्र उपाय ज्ञान ही है। ”

यह प्रसंग सभी के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि आख़िरकार सबको पता है सत्य ईश्वर है, पर फिर भी हम सांसारिक चीज़ो में संलिप्त रहते है, किस प्रकार इससे बहार आ सकते उसका उपाय भी बतलाया गया है।

दूसरा प्रेरक प्रसंग

एक उपदेश के दौरान रामकृष्ण परमहंस से उनका एक अनुयाई पूछता है कि ” यह पूरा संसार नियमबद्ध तरीके से और नियंत्रण के साथ कैसे संचालित हो रहा है, यहाँ इतनी विविधताएं मौजूद है, हर प्राणी पर अलग नियम लागू होते है, इतना विशाल आकर और भिन्न प्रजातिया है इसमें। ”
रामकृष्ण बताते हैं कि ” यह पृथ्वी, यह प्रकृति उस ईश्वर की देंन है और इसकी लगाम भी उन्हीं के हाथो में है। सारे नियम ईश्वर द्वारा निर्मित है, वही इसका संचालन करते है, वहीं नियम भंग करने वाले को दंड भी यही देते है। वो कहते हैं न कि ‘ जो जैसा करता है उसे वैसा ही फल मिलता है ‘ | ”

रामकृष्ण आगे बतलाते है कि ” इस संसार में हर प्रजाति के लिए नियम अलग है। यह सब एक चक्र के अधीन है। सभी नियमो को पालन करने की शक्ति भी हमे ईश्वर से ही प्राप्त होती है। जानवर अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए संघर्ष करते है, ग्रह नक्षत्र, सूर्य,चंद्र सब अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते है, हम मनुष्य इतनी विविधता के होने के पश्चात भी एकता में रहते है, यह सभी उदाहरण हैं कि किस प्रकार हम सभी नियमबद्ध तरीके से कार्य करते है, और जब भी कोई इन नियमो का उलंघन करता है तब प्रकृति स्वयं उसे दंड देती है। इन्ही कारणों से हमे गलत कार्यों से बचना चाहिए।”

तीसरा प्रेरक प्रसंग

एक और चर्चित प्रसंग के अनुसार एक बार जब श्री रामकृष्ण परमहंस अपने शिष्यों को उपदेश दे रहे होते हैं तब उनमे से एक उनसे पूछता है कि ” गुरुदेव ! क्या ईश्वर एक है या अलग ? और किस रास्ते पर चल कर उन तक पंहुचा जा सकता है?”

रामकृष्ण परमहंस बतलाते है कि “ईश्वर तो सदैव से एक ही है पर हाँ, उस तक पहुंचने के मार्ग अलग अलग अवश्य हो सकते है।”
इस पर उनका शिष्य पूछता है कि “महाराज ! हम कैसे जान सकते है की हमारा रास्ता सही है?”

रामकृष्ण परमहंस कहते है कि ” सभी रास्ते सत्य ही है। गंतव्य सबका एक ही है, बस मार्ग अलग है। अगर हमे नगर में स्थित एक स्तम्भ तक पहुंचना है तो वहां जाने के मार्ग हम अलग अलग ले सकते है, पर गंतव्य तो सबका वही स्तम्भ ही रहेगा , ठीक इसी प्रकार ईश्वर तक पहुंचने के अलग अलग मार्ग हो सकते है, पर गंतव्य तो ईश्वर की प्राप्ति ही है । गंतव्य के साथ साथ यात्रा भी महत्व रखती है। आप जिस भी मार्ग से यात्रा कर रहे हैं , आपको उस पर ढृंढ़ता से चलना चाहिए। दुसरो के मार्ग, उनकी यात्रा को देख कर अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए और न ही भ्रमित होना चाहिए। जो सिर्फ अपनी यात्रा और मार्ग पर एकनिष्ठ हो कर चलता है उसे ही ईश्वर की सही मायनो में प्राप्ति होती है। ” быстрые займы на карту


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