भारतीय वैज्ञानिको ने कई बार देश – विदेश में अपने ज्ञान का, शोध का, कार्यकुशलता का लोहा मनवाया है, हमारे देश की ख्याति हर तरफ फैलाई है। आज हम एक वैसे ही वैज्ञानिक के जीवन पर नज़र डालेंगे जिन्होंने थ्योरीटिकल फिजिक्स में क्वांटम मैकेनिक्स क्षेत्र में कई योगदान दिए है। यहां तक की भारत सरकार ने 1954 में उन्हें देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया। उनका नाम है सत्येंद्र नाथ बोस। हां वही सत्येंद्र नाथ बोस जिनका नाम विज्ञान जगत के इतिहास में स्वर्णाक्षरो से लिखा हुआ है।
सत्येंद्र नाथ बोस का जन्म 1 जनवरी, 1894 को कोलकाता, बंगाल में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता सुरेंद्रनाथ बोस थे, जो ईस्ट इंडियन रेलवे कंपनी में एकाउंटेंट थे, व उनकी मां अमोदिनी देवी थीं, जो एक वकील की बेटी थीं। सत्येंद्र घर में सबसे बड़े थे और अपने माता पिता के इकलौता बेटे थे। उनकी छह बहने थी। 1907 में, 13 वर्ष की आयु में, सत्येंद्र ने हिंदू स्कूल में हाई स्कूल कि पढाई की। सत्येंद्र की रूचि शुरू से ही गणित और विज्ञान में रही थी। वह अपने स्कूल में एक होनहार छात्र रूप में उभरे। बचपन में प्रत्येक सुबह, काम पर जाने से पहले, सत्येंद्र के पिता उनके लिए फर्श पर अंकगणितीय समस्याओं को लिखते थे और सत्येंद्र हमेशा अपने पिता के घर लौटने से पहले ही उन्हें हल कर लिया करते थे। बचपन से ही उनकी रूचि इस तरफ रही। स्कूल में एक बार सत्येंद्र को गणित में 100 में से 110 अंक दिए गए थे क्योंकि उन्होंने परीक्षा के पेपर में कुछ समस्याओं को एक से अधिक तरीकों से हल किया था।
1909 में उन्होंने हाई स्कूल की पढाई के बाद कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में विज्ञान की डिग्री की पढाई शुरू की, उन्होंने एप्लाइड मैथमेटिक्स में महारत हासिल की व कक्षा में प्रथम श्रेणी के साथ स्नातक हुए। इसके बाद उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री हासिल की। इसके बाद वह युनिवर्सिटी ऑफ़ साइंस में एक रिसर्च स्कॉलर के रूप में कार्यरत हो गए।
इस बीच प्रथम विश्व युद्ध शुरू हो गया था और वहीं यूरोप में भौतिकी क्वांटम सिद्धांतों, परमाणु सिद्धांतों, और रिलेटिविटी के क्षेत्रो में नई संभावना, रिसर्च व कई परिणाम साबित किए जा रहे थे। विश्व युद्ध के चलते भारत में यूरोपीय वैज्ञानिक पत्रिकाएं व पुस्तके नहीं पहुंच पा रही थी।
सत्येंद्र और उनके दोस्त मेघनाद साहा ( जो बाद एक प्रसिद्ध एस्ट्रोफिजिसिस्ट बन गए थे ), एक ऑस्ट्रलियन प्रोफेसर Paul Brühl , जो बंगाल इंजीनियरिंग कॉलेज में फिजिक्स पढ़ाया करते थे उनसे कई ज्ञानवर्धक व नवीन पुस्तके हासिल की। बहुत अधिक परिश्रम के साथ उन्होंने एलेक्ट्रोमग्नेटिस्म, रिलेटिविटी, स्पेक्ट्रोस्कोपी, थर्मोडीनमिक्स व स्टैटिस्टकेल मैकेनिक्स में ज्ञान अर्जित किया। 1916 से 1921 तक, वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के अंतर्गत राजाबाजार साइंस कॉलेज के भौतिकी विभाग में लेक्चरर के रूप में कार्य किया। साहा के साथ, सत्येंद्र ने 1919 में आइंस्टीन की ‘ स्पेशल एंड जनरल रिलेटिविटी ‘ जो की जर्मन व फ्रेंच भाषा में थी उसे अंग्रेजी में अनुवादित किया। 1921 में, उन्होंने ढाका विश्वविद्यालय के भौतिकी विभाग के रीडर के रूप में जुड़े।
उन्होंने ढाका में ही जर्मन फिजिसिस्ट मैक्स प्लांक के क्वांटम रेडिएशन लॉ का नतीजा बिना क्लासिकल फिजिक्स की मदद से निकाला था। उन्हें यह पता ही नहीं था कि उनका काम कितना महान व दिलचस्प था। हालांकि जब प्रकाशन के लिए उनका पेपर एक बार में स्वीकार नहीं किया गया, तो उन्होंने 4 जून 1924 को सीधे जर्मनी में अल्बर्ट आइंस्टीन को लेख भेज दिया। आइंस्टीन ने पेपर के महत्व को समझा, व माना कि यह विज्ञान में आगे की तरफ एक महत्वपूर्ण कदम है, उन्होंने इसे खुद जर्मन में अनुवादित किया और सत्येंद्र की ओर से प्रतिष्ठित Zeitschrift für Physik को प्रस्तुत किया। इस महान कार्य के परिणामस्वरूप, सत्येंद्र को यूरोपीय एक्स-रे और क्रिस्टलोग्राफी प्रयोगशालाओं में दो साल तक काम करने का मौका मिला , जिसके दौरान उन्होंने लुई डी ब्रोगली, मैरी क्यूरी और आइंस्टीन के साथ काम किया था।
यूरोप में रहने के बाद, सत्येंद्र 1926 में ढाका लौट आए। उन्होंने प्रोफेसर के पद के लिए आवेदन दिया लेकिन उनके पास कोई डॉक्टरेट डिग्री न होने के कारन , नियमों के तहत, वह प्रोफेसर के पद के लिए योग्य नहीं थे, लेकिन आइंस्टीन ने उनकी सिफारिश की। फिर उन्हें ढाका विश्वविद्यालय में भौतिकी विभाग का प्रमुख बनाया गया। उन्होंने ढाका विश्वविद्यालय में मार्गदर्शन और अध्यापन जारी रखा।
जब भारत का विभाजन तकरीबन निश्चित ही हो गया तब, वह कलकत्ता लौट आए और कलकत्ता विश्वविद्यालय में 1956 तक पढ़ाया।
सत्येंद्र विज्ञान के क्षेत्र में एक लोकप्रिय व्यक्ति थे, एवं वह भारतीय स्वतंत्रता के प्रबल समर्थक थे और उनका मानना था कि एक स्वतंत्र भारत के समृद्ध भविष्य को सुरक्षित करने का सबसे अच्छा तरीका एक शिक्षित, पढ़ी लिखी व प्रबुद्ध आबादी है। उन्होंने भारत में विज्ञान को लोकप्रिय बना दिया था। उनका ध्यान अपनी मातृभाषा बंगाली के प्रति भी काफी था। उन्होंने अपनी कई पत्रिकाएं, पुस्तके व पेपर को बंगाली भाषा में भी अनुवादित किया। उन्हें कभी भी पीएचडी की डिग्री नहीं मिली। अपने आविष्कार के लिए उन्हें आसानी से सम्मानित किया जा सकता था, लेकिन वह काफी सरल व ज़मीन से जुड़े व्यक्ति थे, उन्हें शोध की अभिलाषा थी सम्मान की नहीं।
1959 में, 65 वर्ष की आयु में, उन्हें भारत के राष्ट्रीय प्रोफेसर की मानद उपाधि दी गई।
सत्येंद्र के के पेपर को अब क्वांटम सिद्धांत की स्थापना में सबसे महत्वपूर्ण सैद्धांतिक पत्रों में से एक माना जाता है। वास्तव में, सत्येंद्र ने एक नया क्षेत्र स्थापित किया था: क्वांटम स्टेटिस्टिक्स।
वह कई बार नोबल पुरस्कार के लिए नामांकित भी हुए लेकिन उन्हें यह कभी मिला नहीं। आज जो हम बोस-आइंस्टीन स्टेटिस्टिक्स तकनीक, बोस- आइंस्टीन कंडन्सेट, बोसॉन पार्टिकल आदि के विषयो में सुनते व पढ़ते है वह उन्ही के शोध से जन्मे है।
वह इंडियन फिजिकल सोसाइटी और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के अध्यक्ष रहे। बाद में वह ‘ इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टिट्यूट ‘ के अध्यक्ष भी रहे । उन्हें राज्यसभा के सदस्य के रूप में नामित किया गया । जुलाई 2012 के न्यूयॉर्क टाइम्स के एक लेख के अनुसार सत्येंद्र को “फादर ऑफ़ द गॉड पार्टिकल ” के रूप में भी वर्णित किया गया।
सत्येंद्र नाथ बोस का निधन कलकत्ता में 4 फरवरी 1974 को 80 साल की उम्र में हुआ। वह ऐसे व्यक्तिव है जो आने वाले कई वर्षो तक विज्ञान से जुड़े लोगो को पुरोत्साहित करते रहेंगे। срочный займ на карту
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