लालच के दुष्परिणाम हम सभी जानते है, लेकिन फिर भी कभी न कभी इस कुचक्र में फंस ही जाते है। लालची इंसान के भीतर अविश्वास होता है। दुसरो से अधिक से अधिक से अधिक प्राप्त करने की चाह ही इसे जन्म देती है, वह किसी नीति व नियमो को नहीं मानता।
दरअसल लालच का जन्म स्पर्धा से होता है, स्पर्धा अगर स्वयं से हो तो सर्वोच्च है, लेकिन जब यह द्वेष की भावना के साथ दुसरो से होने लगे, तो विनाशकारी सिद्ध होती है। लालच के जन्म के साथ ही, विचारने, सोचने – समझने की शक्तियां खो जाती है, अच्छे बुरे का ख्याल ही नहीं रहता। लालच से बचने पर जीवन की कई परेशनियां स्वयं ही खत्म हो जाती है।
चलिए इसका उदाहरण एक बहुचर्चित प्रसंग द्वारा देखते है
पुराने समय में एक बार एक संत, अपने शिष्यों के साथ दूसरे नगर की यात्रा कर रहा था। वह जिस नगर जा रहा था वहां के राजा का प्रदेश काफी बड़ा और राज्य काफी समृद्ध था। रास्ते में चलते चलते उन्हें एक स्वर्ण मुद्रा ज़मीन पर पड़ी हुई मिली। संत ने विचार किया कि वह इसे नगर के सबसे ज़रूरतमंद व्यक्ति को देंगे।
सफर करते-करते काफी समय हो गया था, सभी थक गए थे, और कुछ ही पलों में सूर्यास्त भी होने वाला था। संत ने वही एक नदी के किनारे पड़ाव डालकर रुकने का सोचा। रात में उनके सोने के पश्चात एकाएक कोलाहल होने लगा, संत ने बहार आ कर देखा तो पाया कि जिस नगर वह जा रहे थे, वहां का राजा अपनी विशाल सेना लेकर पड़ोस के एक छोटे राज्य पर आक्रमण करने जा रहा है। संत अपने शिष्यों के साथ राजा से मिलने गए, मंत्री ने जब राजा को बताया कि संत उनसे मिलने आये है तब राजा तुरंत अपने रथ से उतर कर संत से मिलने पहुंच गए। राजा ने संत को नमन कर उनसे आशीर्वाद माँगा ।
संत ने आशीर्वाद के तौर पर राजा को वह स्वर्ण मुद्रा प्रदान की जो उसने सबसे ज़रूरतमंद को देने का निश्चय किया था।
राजा ने संत से पूछा ” महात्मा आप यह मुझे क्यों दे रहे है ?”
संत ने बताया कि ” मैंने यह नगर के सबसे ज़रूरतमंद व्यक्ति को देने का निर्णय किया था, इसलिए आपको दिया क्योंकि मुझे आप ही सबसे ज़रूरतमंद दिख रहे है। ”
राजा ने हँसते हुए कहा कि “हे गुरुदेव ! शायद आपको ज्ञात नहीं है, मेरा राज्य काफी विशाल और समृद्ध है, मेरा कोष धन से भरा हुआ है, कई महल है, एक विशाल और शशस्त्र सेना है, मुझे इस एक मुद्रा की आवश्यकता नहीं है। ”
इस पर संत ने कहा कि ” तुम्हारे पास विशाल और समृद्ध राज्य है, धन है, विशाल सेना है, सभी प्रकार के सुख है, फिर भी तुम्हारे भीतर इतना लोभ व लालच है कि रात के अँधेरे में सभी नियमो को तोड़ते हुए, पड़ोस के छोटे से राज्य पर आक्रमण करने जा रहे हो। इस ही कारणवश मेरी नज़रो में आपसे ज्यादा ज़रूरतमंद और कोई नहीं जिसकी प्राप्त करने की क्षुधा शांत ही नहीं हो रही है। ”
संत की इन बातो को सुनकर राजा को अपनी भूल का एहसास हो गया, उसने संत से क्षमा मांग कर, सेना सहित वापस अपने नगर जाने का निर्णय लिया। unshaven girls
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