बीते कुछ सालों से किसानों का रुझान परम्परागत फसलों से हटकर कई अन्य उन्नत फसलों की ओर बढ़ा है। जिनकी खेती से वे आत्मनिर्भर बन रहे हैं। इनमे से ही एक उन्नतशील फसल है पपीता। आज देश के कई भागों में किसान पपीते की खेती व्यापारिक स्तर पर कर रहे हैं। गर्मियां आते ही पपीते की मांग तेजी से बढ़ने लगती है।
पपीते के गुण तथा उपयोग
पपीता कम समय में फल देने वाली फसलों की श्रेणी में आता है। पपीता विटामिन A और C का अच्छा स्रोत जाता है। वैसे तो यह फलों की श्रेणी में आता है, किन्तु कहीं-कहीं इसे सब्जी के तौर पर भी प्रयोग में लाया जाता है। यह सिर्फ ताजे फलों के लिए ही नहीं वरन पपेन जैसे कई महत्वपूर्ण उत्पादों के निर्माण में काम आता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पपेन एक पाचक एंजाइम है जो पपीते के कच्चे फलों से निकलने वाले दूध से बनाया जाता है। जिसका उपयोग विविध प्रकार कि औषधियों के निर्माण में किया जाता है।
पपीते की खेती के लिए अनुकूल जलवायु
हमारा देश पपीते की खेती की लिहाज से काफी उपयुक्त है। अमूमन पुरे भारत की जलवायु उष्ण कटिबंधीय है। जो पपीते की खेती के लिए उपयुक्त है। क्योंकि पपीते की बढ़िया खेती के लिए 5-10 डिग्री से. का तापमान सर्वोत्तम रहता है। अतः इसके खेती की लोकप्रियता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। खेती के क्षेत्रफल के हिसाब से देखा जाये तो ये देश का पांचवां सबसे लोकप्रिय फल है।
उष्ण कटिबंधीय जलवायु होने के कारण पपीते की खेती देश के विभिन्न राज्यों में की जाती है। बिहार के भी कई जिलों में पपीते की व्यापारिक खेती की जाती है। इन्ही में एक जिला है बांका, जहाँ के किसान पपीते की उन्नत तरीके से खेती करके काफी लाभान्वित हो रहे हैं।
धान-गेहूं के खेत में पपीते की खेती
बांका जिले में पपीते की खेती करने वाले किसान आत्मनिर्भर बन रहे हैं। पहले जिन खेतों में धान गेहूं की खेती की जाती थी, वहां अब पपीते की खेती हो रही है। किसानों का मानना है कि परम्परागत फसलों में तो लागत निकलना भी मुश्किल होता जा रहा है। वहीँ इन्ही खेतों में पपीते की खेती करने से उन्हें 5 गुना तक लाभ मिल रहा है। फसल बेचने के लिए भी इन किसानों को दूर दूर भटकना पड़ता है। क्योंकि उन्हें स्थानीय बाजारों से ही काफी मांग मिलती है। साथ ही उन्हें काफी वाजिब दाम भी मिल रहे हैं। इन किसानों को देखकर क्षेत्र के अन्य किसान भी पपीते की खेती में अपना भविष्य तलाशने में लगे हैं। फ़िलहाल जिले में तकरीबन 22 एकड़ में पपीते की खेती की जा रही है।
क्षेत्र के कुछ किसानों ने बताया कि उन्होंने इसकी खेती लगभग तीन साल पहले शुरू की थी। वो भी बहुत छोटे स्तर पर ही की थी । लागत तो कम थी लेकिन मुनाफा उम्मीद से कहीं अधिक हुआ। उसके बाद हमने इसकी खेती को बड़े पैमाने पर करना शुरू किया। पहले इन्ही खेतों में हम धान और गेहूं की फसलें लिया करते थे। आज इनमे पपीते की फसल ले रहे हैं। और हमें फ़िलहाल कोई परेशानी नहीं हो रही है। आस-पास के लोग भी हमसे प्रेरित होकर इसी तरह अपने-अपने खेतों में पपीते की फसल लेना शुरू कर दिया है। तकरीबन छह ब्लॉकों में पपीते की खेती की जा रही है।
खेती के लिए भूमि
कृषि विज्ञानं केंद्र के मुताबिक यहाँ की भूमि पपीते की खेती के लिए उपयुक्त है। इसकी खेती मैदानी इलाकों के साथ-साथ ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी की जा सकती है। बस इसी बात का ध्यान रखना जरुरी होता है कि पपीते के पौधों के बीच जल-जमाव की स्थिति न उत्पन्न होने पाए। क्योंकि ऐसी परिस्थिति में पौधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
पपीते की खेती के लिए बलुई दोमट मिटटी सर्वोत्तम होती है। आवश्यक है कि भूमि उपजाऊ हो और जल निकास का समुचित प्रबंध हो। वैसे पपीते के लिहाज से यह अवश्य सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि खेत की मिटटी का ph 6.5 से 7.5 तक होना चाहिए। किसान भाई एक हेक्टेयर में अगर 1200 पौधे लगाते हैं तो ये आवश्यक है कि पौधे से पौधे के बीच कि दूरी कम से कम दो मीटर जरूर रखी जाये।
क्यारियों में लगाएं पौधे
पपीते की खेती के लिए पौधों की नर्सरी को क्यारियों में लगाना चाहिए। इनमे भली भांति वर्मी कम्पोस्ट खाद अथवा भली प्रकार सड़ी हुई गोबर की खाद को मिटटी में अच्छी तरह से मिलाना चाहिए। सही होगा यदि आप क्यारियों में पौधों की रोपाई से पहले खेत में सिंचाई कर लें।
पौधे लगाने के बाद क्यारियों को पुआल या फिर सूखी घास से ढक देना चाहिए। इससे खेत की नमी की मात्रा बरक़रार रहती है। जहाँ तक हो सके पौधों की रोपाई फरवरी-मार्च महीने में या फिर अक्टूबर-नवम्बर महीने में की जाये तो परिणाम बेहतर मिलता है। बशर्ते समय समय पर खर पतवार, रोग नियंत्रण एवं सिंचाई का विशेष ध्यान रखें।
सही विकास के लिए खाद एवं उर्वरक
पपीता जल्दी फल देने वाला पेड़ है। इसलिए इसे अपेक्षाकृत अधिक उर्वर भूमि की आवश्यकता होती है। सही विकास के लिए प्रति पौधे के हिसाब से 250 ग्राम नाइट्रोजन, 250 ग्राम फास्फोरस एवं 500 ग्राम तक पोटाश की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त प्रति पौधा 20-25 किग्रा सड़ी हुई गोबर की खाद भी दी जा सकती है।
फलों की तुड़ाई
10 से 12 महीनों में ही पपीते की फसल तैयार हो जाती है। जब फलों का रंग पीला पड़ने लगे और नाख़ून लगाने पर फल से दूध न निकले और उसके स्थान पर पानी निकले तो समझ जाएँ की फल अब तोड़ने लायक हो चूका है। ऐसे परिपक्व फसलों की डंठल सहित तुड़ाई करें। फलों को चिड़ियों से बचना चाहिए। इसलिए अर्द्ध परिपक्व फलों को तोडना सही रहता है। अच्छी बढ़वार एवं उचित देखभाल करने से प्रति पेड़ 40-50 किलो फल का उत्पादन होता है। वैसे पपीते की प्रति हेक्टेयर राष्ट्रीय स्तर पर उत्पादकता 317 क्विंटल/हे. है।
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