भारत हमेशा से कृषि प्रधान देश रहा है। हमारे यहां आज भी, हमारी जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा कृषि करके अपना पालन पोषण करता है। 1960 से पहले भारत में कृषि का स्तर काफी कम था क्योंकि हमारे यहां का किसान आधुनिक मशीनों का उपयोग करना नहीं जानता था, इसलिए वह पुराने औजारों तथा पुराने तकनीकों से खेती करता था और अपना रोजगार चलाया करता था, परंतु 1960 के बाद भारत में ग्रीन रिवॉल्यूशन देखने को मिला जहां मशीनों का प्रयोग होने लगा, फर्टिलाइजर्स का प्रयोग होने लगा जिससे हमारा उत्पादन बढ़ने लगा। परंतु, आज भारत जैसे कृषि प्रधान देश में लोग खेती से दूर होते जा रहे हैं। लोगों का यह मानना है कि किसान अपनी कड़ी मेहनत से फसल अगर उगा भी देता है, तो कहीं खराब मौसम के कारण या अन्य कारणों के कारण उत्पाद अच्छा नहीं हो पाया, तो वह मुनाफा कैसे कमाएगा। इसलिए लोग खेती-किसानी को अब मुनाफे का सौदा नहीं मानते और कृषि छोड़ शहरों में नौकरी करने के लिए पलायन कर रहे हैं।
आज, इस आर्टिकल के माध्यम से हम अपने दर्शकों को यह बताने की कोशिश करेंगे कि कैसे एकीकृत कृषि प्रणाली को अपना कर, आज का किसान मुनाफा कमा सकता है।
भारत सरकार ने 2022 तक किसानों की आमदनी को दुगना करने का एक लक्ष्य रखा है जिसके प्रति वह निरंतर प्रयास कर रही है इसके लिए उन्होंने कृषि वैज्ञानिक अनुसंधान कार्यों में बढ़ोतरी करी है तथा कृषि प्रसार एजेंसियों को यह दिशा निर्देश दिए हैं कि वह अपने क्षेत्र में किसानों को कृषि की नवीनतम तकनीकों के बारे में बताएं और उन्हें एकीकृत कृषि की तरफ अग्रसर करें। खेती की तरफ लगातार घटते जा रहे रुझान तथा आर्थिक संकट से जूझ रहे किसानों के लिए एकीकृत कृषि प्रणाली वरदान साबित हो रही है। इस प्रणाली को अपनाने से किसानों को जहां हर वर्ष रोजगार मिलेगा वहीं उनकी आय में भी वृद्धि होगी। एकीकृत कृषि प्रणाली का मतलब, कृषि की उस प्रणाली से है, जिसमे कृषि के विभिन्न तरीके जैसे फसल उत्पादन, मवेशी पालन, फल तथा सब्जी उत्पादन, मधुमकखी पालन, वानिकी इत्यादि को इस प्रकार मिलाया जाता है कि वे एक दूसरे के साथ मिलकर पर्यावरण को सुरक्षित रखते हुए उत्पादन क्षमता बढ़ाए जिससे किसानों को लाभ मिले। छोटे किसानों की आय बढ़ाने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र एकीकृत कृषि प्रणाली को अपनाने के लिए किसानों को जागरूक कर रहे हैं और जैसा कि अभी आपने देखा इस प्रणाली में किसी के साथ साथ बहुत सारी चीजों का ज्ञान किसानों को दिया जाता है, जिस्से किसान के परिवार को पूरे वर्ष रोजगार मिलता है तथा उसकी आय में बढ़ोतरी होती है।
आइए दो उदाहरण देखते हैं, जहां इन किसानों ने एकीकृत कृषि प्रणाली से लाखों रुपए कमाए और सभी के लिए एक मिसाल साबित हुआ।
पहला उदाहरण रायपुर का है। जहां रायपुर के बागबाहरा क्षेत्र के चारभांठा गाँव निवासी मनोज नायडू ने अपनी नौकरी छोड़ कर, एकीकृत कृषि पर ध्यान दिया और आज अच्छा-खासा मुनाफा उठा रहे हैं। मनोज नायडू ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और पढ़ाई के बाद मनोज की नौकरी सऊदी अरब के कतर में एक सरकारी तेल कंपनी में लगी जहां उनको सालाना 45 लाख रुपए मिलते थे, परंतु मनोज को या नौकरी रास नहीं आई क्योंकि उन्होंने किसान बनने का फैसला कर लिया था। आखिरकार मनोज अपनी नौकरी छोड़ कर अपने गांव लौट आए और खेती शुरू कर दिया। परंपरागत खेती की जगह आधुनिक खेती पर ध्यान लगाकर मनोज ने फूल, मुनगा, टमाटर जैसी सब्जियों की खेती शुरू की। धीरे-धीरे उन्हें लाभ मिलने लगा जिसके बाद उन्होंने उत्पादन बढ़ाने के लिए अन्य सब्जियां जैसे करेला, बैंगन, टमाटर, गोभी, मिर्च, आदि फसलों की भी खेती शुरू कर दी। आधुनिक उपकरणों की मदद से उन्होंने बंजर जमीन पर फसल उगा कर एक नई मिसाल पेश करी। मनोज की देखा-देखी अन्य गाँव के किसान भी उत्साहित हुए और उन्होंने भी एकीकृत कृषि करने का फैसला किया। मनोज ने उनका अच्छा मार्गदर्शन किया तथा सरकारी सहायता के बारे में किसानों को बताया। मनोज के प्रयास से सभी गांव वालों को फायदा हुआ और उनकी आमदनी में बढ़ोतरी हुई।
दूसरा उदाहरण हिमाचल प्रदेश के जिला मंडी के सुंदरनगर विकास खंड पलोहटा गांव के रहने वाले संजय कुमार का है। संजय कुमार ने 5 वर्ष विदेश में बिताने के बाद अपने गांव वापस आए और कृषि को स्वरोजगार के तौर पर अपनाने के बारे में सोचा। उनके एक मित्र उन्हें कृषि विज्ञान केंद्र लेकर गए जहां वह वैज्ञानिकों से मिले और आधुनिक खेती के बारे में जानने की जिज्ञासा व्यक्त की। वहां पर वैज्ञानिकों ने उन्हें एकीकृत कृषि प्रणाली मॉडल के बारे में समझाया और एकीकृत कृषि करने के लिए प्रेरित किया।
2017 में उन्होंने 504 वर्ग मीटर का पॉलीहाउस निर्माण कराया जहां वह विभिन्न बेमौसमी सब्जियां जैसे शिमला मिर्च, टमाटर, खीरा, धनिया की खेती करते हैं और उन्हें बाजार में बेचते हैं, इससे उन्हें लगभग 2 लाख की आमदनी होती है, सालाना। उन्होंने सिंचाई करने के लिए 50 घन मीटर का टैंक भी निर्माण कराया है तथा उन्होंने अपने पत्नी को भारतीय कृषि कौशल परिषद के अंतर्गत 25 दिन के प्रशिक्षण के लिए भेजा था जिसके बाद उनकी पत्नी भी एकत्रित कृषि में उनका सहयोग करती हैं। वे मशरूम का उत्पादन करती हैं और इस व्यवसाय को बड़े पैमाने पर करने की योजना बना रही हैं। संजय कुमार ने वर्ष 2019 में, कृषि विज्ञान केंद्र से 25 दिन की ऑर्गेनिक ग्रोवर विषय पर सफलतापूर्वक प्रशिक्षण हासिल किया है, जिसके बाद वह अपने दो बीघा जमीन पर शून्य लागत की प्राकृतिक खेती कर रहे हैं।
संजय कुमार ने सोशल मीडिया का प्रयोग करके उत्पाद की मार्केटिंग पर विशेष ध्यान दी है। अब वह सोशल मीडिया के जरिए अन्य किसानों के प्रचार-प्रसार के कार्यों में मदद करते हैं तथा सुंदर नगर बाजार की भी खोज-खबर रखते हैं। वे सोशल मीडिया पर शून्य लागत के प्राकृतिक खेती के बारे में अन्य किसानों को ट्रेनिंग भी देते हैं तथा कृषि विभाग, बागवानी विभाग व अन्य एजेंसियों के प्रशिक्षण के बारे में उन्हें अनुभव प्रदान करते हैं।
नए दौर के किसानों के लिए संजय कुमार और मनोज नायडू एक प्रेरणा स्रोत बन कर उभरे हैं। सीमित साधन का प्रयोग करके, एकीकृत कृषि द्वारा उन्होंने मुनाफा कमाया है और छोटे किसानों के लिए आजीविका सुरक्षा का एक उदाहरण पेश किया है।
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