ज्ञान, मनुष्य के जीवन का सर्वोपरि तत्व है। ज्ञान को मनुष्य का परम मित्र कहा गया है, क्योंकि समय के साथ सभी प्रकार के भौतिक सुख नष्ट हो सकते हैं, परंतु ज्ञान हर परिस्थिति में मनुष्य के साथ रहता है। ज्ञान हर रूप में मनुष्य की सहायता करता है और उसे परेशानियों से बाहर निकालता है। जिस प्रकार एक छोटा सा दीया घनघोर अंधकार को भी दूर कर सकता है, उसी प्रकार ज्ञान, मनुष्य के जीवन से नकारात्मकता, दुख, परेशानियां; जैसे सभी अंधकार को दूर करता है। ज्ञान के माध्यम से मनुष्य संसार में धन की प्राप्ति कर सकता है, कला-कौशल में सिद्धि प्राप्त कर सकता है और अपने जीवन को सुखी बना सकता है। ज्ञान अर्जित करने की ना कोई उम्र होती है और ना कोई जगह। ज्ञान तो किसी भी उम्र में और किसी भी जगह अर्जित किया जा सकता है, बस मनुष्य के अंदर सीखने की इच्छा होनी चाहिए। ज्ञान का सबसे बड़ा शत्रु क्रोध है। क्रोध उस अंधकार की तरह काम करता है, जो ज्ञान रूपी रोशनी को समाप्त कर देता है। मनुष्य के अंदर क्रोध, अज्ञानता को बढ़ाता है और उसके सीखने की इच्छा में कमी लाता है।
हम एक कहानी के माध्यम से ज्ञान प्राप्ति का मार्ग बताना चाहेंगे।
प्राचीन काल में एक राजा हुआ करता था, जो बेहद कुशल शासक था और अपनी प्रजा से बहुत प्यार करता था। राजा कभी ज्ञान अर्जित करने में कोई कसर नहीं छोड़ता था, उसे किसी से भी सीखने में शर्म नहीं आती थी। एक दिन जब वह गुप्त रूप से प्रजा का हाल जानने के लिए अपने राज्य में घूमने निकला, तो उसने देखा कि एक वृद्ध खेत में काम कर रहा है।
वह वृद्ध व्यक्ति शरीर से पूरी तरह स्वस्थ लग रहा था, परंतु उसके बाल सफेद हो गए थे। राजा ने जिज्ञासा पूर्वक उस वृद्ध से उसकी आयु पूछी, तो वृद्ध ने बड़ी विनम्रता से उत्तर दिया कि उसकी आयु 4 साल है। यह सुनकर राजा थोड़ा हैरान हो गया, उसे लगा कि वृद्ध उससे मजाक कर रहा है, तो उसने फिर से अपना प्रश्न दोहराया।
इस पर वृद्ध ने फिर जवाब दिया कि उसकी उम्र 4 साल है, वृद्ध का जवाब सुनकर राजा को गुस्सा आने लगा, तभी उसे अपनी गुरु की सीख याद आई, जिसमें गुरु ने बताया था कि अगर ज्ञान अर्जित करना है तो क्रोध से दूरी बनानी होगी और धैर्य से काम लेना होगा।
राजा ने विनम्रता से उस वृद्ध से कहा कि आपकी उम्र, मुझे 80 साल लग रही है, परंतु आप इसे 4 साल क्यों बता रहे हैं। इस पर वृद्ध ने जवाब दिया कि राजा का अनुमान सही है, उसकी उम्र 80 वर्ष है परंतु 4 साल से वह परोपकारी कार्यों में लगा हुआ है और प्रभु का स्मरण करता है, इसी वजह से वह अपनी उम्र 4 साल बताता है। राजा को उस वृद्ध की बात समझ आ गई और उसने अपना पूरा जीवन प्रजा के परोपकारी कार्य और भलाई में समर्पित कर दिया।
ज्ञान की प्राप्ति कभी भी, कहीं भी और किसी से भी की जा सकती है, बस मनुष्य के अंदर क्रोध नहीं होना चाहिए और सीखने की भावना होनी चाहिए।
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