जब महात्मा गांधी ने संत को गेरुआ वस्त्र का त्याग करने को कहा

एक आम इंसान को जिंदगी जीने के लिए तीन चीजों की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। खाने के लिए भोजन, रहने के लिए घर और पहनने के लिए कपड़ा। इन तीनों का हमारी जिंदगी में एक अहम योगदान है। इन तीनों में से हमारा पहनावा एक ऐसी वस्तु है जो हमारा जीवन यापन करने के साथ ही हमारी सामाजिक पृष्ठभूमि और व्यवहार के बारे में भी जानकारी देता है। शायद इसीलिए कहा जाता है कि अगर एक इंसान के बारे में जानना है तो उसके पहनावे पर गौर करें। कई बार हम किसी से बिना बात किए ही सिर्फ उसके पहनावे को देखकर उसके बारे में अंदाजा लगा लेते हैं कि वह इंसान किस सामाजिक पृष्ठभूमि से हैं और उसका व्यवहार कैसा है।

हमारे कपड़े और उन्हें पहनने का ढंग कई बार हमारे कार्य को भी दर्शाते हैं। उदाहरण के लिए अगर देखें तो चिकित्सक की पहचान उसके सफेद कपड़े से, वकील की पहचान उसके काले कोट से, और सैनिक की पहचान उसके फौलादी शरीर पर वर्दी से होती है। इतना ही नहीं, अक्सर हमारे कपड़े हमारे धर्म की एक पहचान भी बनते हैं। यह बताते हैं कि एक व्यक्ति किस धर्म से ताल्लुक रखता है। एक मुसलमान व्यक्ति की पहचान उसके सर पर टोपी और पठानी पैजामा कुर्ता, सिख की पहचान उसके सर पर लगी पगड़ी और हिंदू संत और साधु की पहचान उनका गेरुआ वस्त्र होता है। इसी से संबंधित एक कथा है जो महात्मा गांधी के जीवनकाल से जुड़ी हुई है।

देशसेवा के लिए संत ने त्यागे गेरुआ वस्त्र

एक बार महात्मा गांधी के आश्रम में एक संत आए। वे गांधी जी से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने गांधी जी से कहा कि वे आश्रम में ही रहकर देश सेवा में अपना योगदान देना चाहते हैं। महात्मा गांधी ने कहा कि यह हमारे लिए बहुत सौभाग्य की बात होगी कि आप जैसा महान संत हमारे इस आश्रम में रहे लेकिन इसके लिए आपको गेरूए वस्त्रों का त्याग करना होगा। यह सुनकर संत को गुस्सा आया, लेकिन उन्होंने अपने गुस्से पर काबू रखते हुए महात्मा गांधी से कहा कि यह कैसे मुमकिन है? मैं एक संत हूं, मैं इन वस्त्रों का त्याग कैसे कर सकता हूं?

महात्मा गांधी ने जवाब दिया कि हमारे देश में संतों को भगवान का दर्जा दिया जाता है। लोग उन्हें भगवान का रूप मानकर उनकी पूजा करते हैं। अगर आप इस आश्रम में रहकर गेरुआ वस्त्र पहने रहेंगे तो लोग देश सेवा छोड़ आपकी सेवा में लगे रहेंगे। यह जरूरी नहीं है कि आप सन्यासी तभी कहलाएंगे, जब आप गेरुआ वस्त्र पहनेंगे। यह सुनकर संत की आंखें खुल गई और उन्होंने तुरंत ही उन वस्त्रों को त्याग दिया और देश सेवा में महात्मा गांधी का साथ देने लगे।

वस्त्रों के माध्यम से खुद को श्रेष्ठ बनाने से बेहतर है कि हम अपने गुणों को श्रेष्ठ बनाएं। याद रहे, जीवन में कभी भी वस्त्रों की पूजा नहीं होती सिर्फ गुणों की पूजा होती है। महात्मा गांधी की दी हुई यह सीख अगर आपको पसंद आई हो तो इसे और भी लोगों तक जरूर पहुंचाएं। साथ ही टिप्पणी करके जरूर बताएं कि आपको महात्मा गांधी की कौन सी बातें प्रेरित करती हैं। займ онлайн на карту без отказа


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