सिखों के प्रथम गुरु, श्री गुरु नानक देव जी 15वीं सदी के दार्शनिक, समाज सुधारक और सिख संप्रदाय के संस्थापक थे। सिख संप्रदाय की शुरुआत करने के साथ-साथ उन्होंने समाज में फैले जाति भेदभाव, ऊंच-नीच आदि बुराइयों को दूर करने की कोशिश की, जिसका सबसे अच्छा उदाहरण उनके द्वारा स्थापित ‘लंगर’ की प्रथा देखने में मिलती है, जहां सभी को बिठाकर भोजन कराया जाता है।
गुरु नानक जी ने अपने अनुयायियों को कई उपदेश दिए जो सदैव प्रचलित रहेंगे। उनके उपदेशों का मूल भाव यह था कि परमात्मा एक है, अनंत है, सर्वशक्तिमान और सत्य है। वह सर्वत्र व्याप्त है, इसलिए उसकी मूर्ति पूजा निरर्थक है। हम अपने दर्शकों को यह भी बता दें कि गुरु नानक देव जी ने कबीर दास के निर्गुण भक्ति का पंजाब प्रांत में प्रचार किया था। सत्य और ईमानदारी पर जोर देते हुए गुरु नानक जी ने अपने अनुयायियों को यह सलाह दी थी कि; हमें अपना जीवन ईमानदारी से जीना चाहिए और सत्य के मार्ग से कभी अलग नहीं होना चाहिए।
आज हम उनसे जुड़े एक प्रचलित कहानी के बारे में बात करेंगे और उनकी शिक्षाओं को कहानी द्वारा अपने आचरण में अपनाने की कोशिश करेंगे।
पुराने समय की बात है, एक प्रांत का राजा बेहद क्रूर था और अपनी प्रजा को बहुत कष्ट दिया करता था। वह राजा दूसरों का धन लूट कर अपना खजाना भरा करता था। एक समय गुरु नानक देव जी भ्रमण पर निकले थे और घूमते-घूमते वह उस राजा के राज्य में पहुंचे।
उनके शिष्यों ने राजा की क्रूरता के बारे में गुरु नानक देव जी को सब बता दिया और जब राजा को यह पता चला कि गुरु नानक देव जी उसके राज्य में आए हैं, तो वह उनसे मिलने पहुंचा। राजन को देखकर गुरु नानक देव जी ने बहुत विनम्रता से कहा कि हे राजन मेरे पास एक पत्थर है, जो मुझे बहुत प्रिय है क्या आप इसका विशेष ध्यान रखेंगे?
राजा ने उन्हें उत्तर दिया कि ठीक है, मैं इसे अपने पास रख लेता हूं लेकिन आप इसे वापस कब लेकर जाएंगे। इस पर गुरु नानक देव जी ने कहा कि जब हमारी मृत्यु हो जाएगी तब मैं आपसे अपना कीमती पत्थर वापस लेने आऊंगा। उनका जवाब सुनकर राजा हैरान हो गया और उसने हैरानी से पूछा यह कैसे संभव है? मृत्यु के पश्चात कोई व्यक्ति अपने साथ कुछ कैसे ले जा सकता है?
गुरु नानक ने विनम्रता से उस राजा को बोला कि हे राजन जब यह बात आप जानते हैं, तो आप प्रजा का धन लूट कर अपना खजाना क्यों भर रहे हैं। गुरु नानक की बात सुनकर राजा को अपनी भूल का अंदाजा हुआ और उसने गुरुनानक से क्षमा मांगी और संकल्प लिया कि वह अपनी प्रजा पर अत्याचार बंद कर देगा।
इस कहानी से यह सीख मिलती है कि हमें धन कमाने के लिए गलत तरीका अपनाना नहीं चाहिए तथा धर्म के अनुसार काम करते रहना चाहिए।
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