जब तक मनुष्य स्वयं के विषय में सोचता रहता है, अपनी पीड़ा, दुख, मोह, लोभ, इन सबसे बाहर नहीं आता तब तक उसे शांति प्राप्त नहीं हो सकती। शांति प्राप्त करने के लिए मन का खाली होना अति आवश्यक है। आज इस ही बात को ध्यान में रखते हुए एक कहानी के बारे में जानेंगे जब एक संत ने व्यापारी को शान्ति की सीख दी।
कहानी यूँ शुरू होती है कि, एक बार एक व्यापारी शान्ति की तलाश में रोज़ ध्यान लगाने की कोशिश करता था, लेकिन उसे कभी सफलता प्राप्त नहीं होती थी। एक दिन वह अपने नगर के एक संत के समक्ष यह समस्या ले कर गया।
व्यापारी ने संत से कहा कि ” हे महाराज ! मेरे पास धन धान्य की कोई कमी नहीं है, घर में खुशहाली है व घर समृद्ध है, लेकिन फिर भी मुझे कभी शान्ति का अनुभव नहीं होता। इस हेतु मैं जब भी ध्यान लगाने का प्रयास करता हूँ तब ध्यान में नहीं बैठ पाता। ”
व्यापारी आगे कहता है कि ” मुझे सदैव ही तनाव व चिंता बनी रहती है, आप कृपा करके इसका कुछ उपाय बतलाये। ”
संत उससे कहते है कि ” इसका उपाय जानने के लिए तुम्हे मेरे साथ चलना होगा। ”
सर्वप्रथम संत उस व्यापारी को एक खिड़की के सामने ले जाते है और पूछते है कि ” बाहर क्या दिख रहा है ? ”
व्यपारी जवाब देता है कि ” एक सुन्दर दृश्य है यह, बाहर हरियाली है, झरने है, प्रकृति की सुंदरता है ”
इसके पश्चात संत उस व्यापारी को एक दर्पण के समक्ष ले जाता है और पूछता है ” अब बताओ वत्स, अब क्या दिख रहा है ”
व्यापारी कहता है कि अब तो उसे सिर्फ स्वयं का प्रतिबिम्ब नज़र आ रहा है।
अब संत उसे बतलाते है कि ” इस कांच के ऊपर एक परत चढ़ी है जिसके कारणवश तुम्हे इसके दूसरी तरफ क्या है वह नज़र नहीं आ रहा है। तुम सिर्फ स्वयं को ही देख पा रहे हो, ठीक इसी प्रकार तुम्हार मन में भी स्वार्थ, दुख, चिंता, लोभ, भय आदि की परते चढ़ी हुई है। जब तक तुम उन्हें नहीं हटा देते तब तक तुम्हे शान्ति का अनुभव प्राप्त नहीं हो सकता। जब इंसान स्वयं को भूल जाता है तब ही सुख व शान्ति को प्राप्त कर सकता है।”
संत आगे कहते है कि ” जब तक तुम स्वयं को देखते रहोगे तब तक शान्ति को नहीं देख सकते, तब तक तुम सही प्रकार से ध्यानमग्न नहीं हो सकते। जब तक इंसान आत्मकेंद्रित होता है, उसके मन में कई चीज़ो के परदे पड़े होते है तब तक वह चैन और शान्ति को धारण नहीं कर सकता।” займы на карту срочно