जब एक महिला ने कालिदास से पूछा कि आप कौन हैं?

आप सभी ने सुना तो होगा ही कि ‘अहंकार बुद्धि को हर लेता है’। महान से महान व्यक्ति को भी घमंड अपने आगोश में ले लेता है, भले ही वह कितना ही सिद्ध मनुष्य क्यों न हो। अहंकार किसी को नहीं छोड़ता। इसे सिर्फ ज्ञान और विवेक से ही पराजित किया जा सकता है।

आज हम एक ऐसे प्रसंग के विषय में जानेंगे जिसमे महाकवि कालिदास जी को अहंकार ने घेर लिया था तो स्वयं ईश्वर को उनका घमंड तोड़ने आना पड़ा था।

यह बात उस समय की है जब कालिदास की ख्याति हर जगह थी। अपने इस मान सम्मान, ख्याति व आदर से उनके अंदर अहंकार ने जन्म ले लिया था। वह स्वयं को महाज्ञानी व सर्वषेष्ठ समझने लगे थे। एक दिन वह यात्रा कर रहे थे, तभी उन्हें प्यास लगी। आस पास कोई जलाशय नहीं था तो मजबूरन उन्हें आगे बढ़ना पड़ा। दूर जाके उन्हें एक गांव मिला। गांव में कुएं के पास एक महिला पानी निकाल रही थी।

कालिदास उस महिला के पास पहुंचे और पानी पिलाने की याचिका करने लगे। उन्होंने बताया की काफी दूर से आ रहे है व प्यासे है, कृपया थोड़ा पानी पिला दीजिये। महिला ने कालिदास से कहां की वह उन्हें जानती नहीं है, इसलिए सर्वप्रथम वह उनका परिचय जानना चाहेंगी।

कालिदास इतने विख्यात थे इसलिए उन्हें अपना परिचय देने की आदत नहीं थी। अपने अहंकार में आकर उन्होंने परिचय नहीं दिया सिर्फ इतना कहा की मैं तो मेहमान हूँ।

इस पर महिला बोली कि ” मान्यवर ! आप गलत है, क्योंकि संसार में तो सिर्फ दो ही मेहमान होते है, और वह है धन एवं यौवन”।

कालिदास इस उत्तर से आश्चर्यचकित थे। उन्होंने इसके बाद कहा “चलिए ठीक है, फिर मुझे सहनशील ही मान लीजिये”

इस पर महिला ने उत्तर दिया कि “आप इस बार भी गलत है। दुनिया में सिर्फ दो चीज़े सहनशील है, प्रथम यह धरती जो हम सबके भार को धारण करती है और द्वितीय यह पेड़, जो पठार खा कर भी सदैव फल ही देते है।”

कालिदास को लगा यह गांव की महिला काफी बुद्धिमान है। वह उस महिला के उत्तरों से काफी हैरान थे।

इसके बाद कालिदास जी कहते है कि “मैं तो हठी हूँ। अब इसका क्या उत्तर है आपके पास?”

महिला जवाब देती है ” इसका भी उत्तर है महोदय, आप इस बार भी गलत ही हैं। संसार में सिर्फ दो चीज़े हठी होती है जो कि हैं हमारे नाखून व बाल, जो हर बार काटने पर दोबारा बढ़ जाते है।”

कालिदास जी के आश्चर्य की सीमा न थी। उन्होंने हाथ जोड़ कर महिला से क्षमा मांगी, और कहने लगे कि ” मैं मुर्ख हूँ, मुझे माफ़ कर दीजिये, अपने दंभ के कारण मेनें एसा बर्ताव किया।”

महिला कहती है ” इस बार भी आप गलत ही है, क्योंकि मूर्ख भी सिर्फ दो लोग ही होते है, एक राजा, जो बिना योग्यता के लोगो पर शासन करता है, और दूसरा उसका दरबारी जो उसके हर गलत व कुकृत्य पर भी उसकी झूठी प्रशंसा करता है।”

कालिदास उनके समक्ष हाथ जोड़ कर व सर झुका कर बैठ जाते है, और क्षमा मांगने लगते है। जब वह सर उठा कर ऊपर देखते है तो कि स्वयं माँ सरस्वती उनके सामने खड़ी होती है। माँ उन्हें स्वयं अपने हाथो से पानी पिलाती है और बताती है कि तुम्हारा घमंड तोडना आवश्यक था वत्स। अगर तुम्हारे जैसा महाज्ञानी व्यक्ति भी अहंकार के वशीभूत हो जायेगा तो आम जग को क्या सन्देश जायेगा।

कालीदास रोते हुए उनसे क्षमा मांगने लगते है। उन्हें बताते है कि किस तरह वह आँखों पर घमंड का पर्दा पड़े होने के कारण उन्हें पहचान ही न सके, एवं उन्हें वचन देते है कि आज के पश्चात वह कभी भी अहंकार के वश में नहीं आएंगे।

माँ सरस्वती उन्हें आशीर्वाद दे कर अंतर्ध्यान हो जाती है। срочный займ на карту онлайн


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