उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले की नरवल तहसील के सरसौल ब्लाक के एक छोटे से गांव के रहने वाले किसान भंवर पाल सिंह आज अग्रणी आलू उत्पादक किसान हैं। कभी 10 बीघे में खेती करने वाले भंवर पाल सिंह आज 200 बीघे से ज्यादा में गेंहू,आलू,मिर्च,धान आदि फ़सलों की खेती करते हैं।
रोजगार की तलाश ने खेती की ओर मोड़ा
भंवर पाल सिंह एक उच्च शिक्षित किसान हैं ।उन्होंनें वर्ष 1984 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक और 1987 में एलएलबी भी किया परन्तु अच्छी नौकरी नहीं मिली तो 1992 में खेती करने की ठान ली। शुरू में पूंजी और संसाधन के अभाव में बहुत संघर्ष करना पड़ा। कम पैदावार से लागत भी मुश्किल से निकल पाती थी। इसी बीच उन्हें सही राह तब मिली जब वे 1994 में चंद्रशेखर आज़ाद कृषि विश्वविद्यालय, कानपुर की किसान समिति से जुड़े। चंद्रशेखर आज़ाद कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिको ने उन्हें नवीन कृषि तकनीकी और संसाधन के सही उपयोग से उन्नत खेती के तरीके बताए। कृषि वैज्ञानिकों द्वारा बताये गये ज्ञान को भंवर पाल सिंह ने अपनी खेती में लगाया जिस से उनकी दिशा और दशा दोनों बदल गई। देखते ही देखते वे जिले के अग्रणी किसान बन गए।
नवीन तकनीकी के प्रयोग से बदला अपने भाग्य को
भंवर पाल सिंह पहले परंपरागत रूप से गेंहू धान,आलू आदि फ़सलों की खेती करते थे जिसमें लागत बढ़ती जा रही थी और उत्पादन और मुनाफ़ा कम होता जा रहा था। कृषि वैज्ञानिकों द्वारा बताए गये ज्ञान को इस्तेमाल कर उन्होंने नए कृषि यंत्र मंगाये और श्रम और पूंजी की बचत की। जिससे मुनाफ़ा बढ़ने लगा। आज उनके पास कई ट्रैक्टर,आलू बोने की प्लांटर मशीन, दवा छिड़कने के बड़े स्प्रेयर तथा आलू खोदने की हार्वेस्टिंग मशीनें हैं। जिनकी मदद से वे बड़े पैमाने पर खेती कर पा रहे हैं।
आलू बना सोना
उत्तर प्रदेश के कानपुर, कन्नौज, इटावा, फर्रुखाबाद आदि जिलों में आलू की खेती बहुतायत में की जाती है। भंवर पाल सिंह बताते हैं कि मैने 2002-03 से आलू की खेती शुरूआत की, तभी से केंद्रीय आलू संस्थान शिमला के वैज्ञानिको से मार्गदर्शन लेता रहा हूँ, तथा उनकी सलाह से बीज और किस्म का चयन करता हूँ। केंद्रीय आलू संस्थान शिमला ने आलू की 51 से ज्यादा क़िस्में विकसित की हैं। लेकिन हमारे जिले के लिए उपयुक्त किस्म के बीज मुझे संस्थान के वैज्ञानिकों की मदद से पता चले। जहां सामान्य किसान प्रति एकड़ 300 कुंतल आलू का उत्पादन ले पाते हैं,इन नई क़िस्म से भंवर पाल सिंह प्रति एकड़ 400-500 कुंतल आलू का उत्पादन कर लेते हैं। आलू की गुणवत्ता भी काफी अच्छी है जिससे फसल का बाजार मूल्य भी अच्छा मिलता है। बहुत से किसान उनके आलू को बीज बनाने के लिए ले जाते हैं।
गेंहू, धान, मिर्च की भी खेती
सफलता कभी अकेले किसी एक चीज पर निर्भर नही हो सकती इसीलिए भंवर पाल सिंह आलू के साथ गेंहू, मिर्च और अन्य फसलों की भी खेती करते हैं। आलू की फसल दिसम्बर से मार्च के बीच तीन-चार महीनों में उगाई जाती है। वर्ष के अन्य महीनों में अलग-अलग फसलें उपजाते हैं। जिससे उन्हें वर्ष भर आमदनी होती रहती है। भंवर पाल सिंह गेंहू, धान और मिर्ची उत्पादन में भी ज़िले के अग्रणी किसान हैं।
प्रेरणा और पुरुस्कार
भंवर पाल सिंह आज अपने आस पड़ोस के किसानों के ही नही अपितु प्रदेश और देश के अनगिनत किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। जहां सामान्य किसान लाभ न होने के कारण खेती बाड़ी से मुख मोड़ रहे हैं वहां भंवर पाल सिंह जैसे किसान एक नई राह दिखाते हैं।
भंवर पाल सिंह को जिले का अग्रणी प्रगतिशील किसान का पुरुस्कार कई बार मिल चुका है। आलू की उन्नत की खेती के लिए उन्हें गुजरात के गांधी नगर में जनवरी 2020 में आयोजित ग्लोबल पोटेटो कॉन्क्लेव 2020 में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने सर्वश्रेष्ठ आलू उत्पादक अवार्ड से सम्मानित किया। इससे पहले भी वर्ष 2014 वे प्रधानमंत्री से सम्मानित हो चुके हैं। buy viagra online